आधार कार्ड से संबन्धित चुनाव आयोग को दी गई चिट्ठी की प्रति

प्रति,
1. मुख्य चुनाव आयुक्त, नई दिल्ली
2. मुख्य चुनाव पदाधिकारी, बिहार.

विषय: राष्ट्रीय निर्वाचक नामावली परिशोधन एवं प्रमाणीकरण कार्यक्रम-एनईआरपीएपी 2015 के तहत मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़े जाने के विरोध में.

महाशय,
भारत निर्वाचन आयोग के आदेशानुसार – सं. ईसीआई/प्रे नो/21/2015, दिनांक 2.03.2015 – बिहार में निर्वाचक नामावली परिशोधन एवं प्रमाणीकरण कार्यक्रम के तहत मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़े जाने का कार्य चल रहा है. शायद, पूरे देश में बिहार ऐसा पहला राज्य है, जहां यह जोर-शोर से किया जा रहा है. चर्चा इसकी भी है कि बिहार में आगे डीएनए -आनुवंशिक गुणसूत्र, के आधार पर मतदाता पहचान पत्र बनाया जाएगा. निर्वाचन आयोग ने अपने 29.05.15 के प्रेस नोट-सं. ईसीआई/ प्रेस नोट/37/2015, में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ा जाना ऐच्छिक है. लेकिन चूंकि खुद आधार कार्ड का सवाल देश में भारी विवाद का विषय बना हुआ है, इसलिए मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ा जाना कहीं से जायज नहीं है. इस संबंध में नीचे दिये गये तथ्यों की ओर हम आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं.

लोकसभा की स्टैंडिंग कमिटी ने 11 दिसंबर 2011 को जारी रिपोर्ट में इस पूरी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े किए थे -देखें, परिशिष्ट 1. उसने न सिर्फ इसकी वैधानिकता पर सवाल खड़ा किया, बल्कि व्यक्ति की निजता के लोकतांत्रिक अधिकार सहित देश की सुरक्षा व संप्रुभता के लिए भी इसे खतरा बताया. अमेरिका की स्.1 आइडेंटिटी सोलूसन्स, फ्रांस के साफरान ग्रुप आदि जैसी विदेशी निजी कंपनियों द्वारा आधार कार्ड बनवाए जाने को देश के लिए खतरा बताया गया है. व्यक्ति की संपूर्ण जानकारी की सुरक्षा के लिए देश में अभी तक कोई पुख्ता कानून नहीं है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति की सूचनाओं के दुरूपयोग की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता. स्टैंडिंग कमिटी ने यहां तक कहा है कि हमें इंगलैंड के अनुभव से शिक्षा लेनी चाहिए जहां ऐसे प्रयास पर रोक लगा दी गयी. स्टैंडिंग कमिटी ने इसमें इस्तेमाल किए जा रहे तकनीक की वैधता व विश्वसनीयता पर भी गंभीर सवाल उठाया है और यह कहा है कि इस संबंध में हमारे पास अभी तक कोई पुख्ता व प्रामाणिक जांच व आधार नहीं है. इस प्रकार उसने इसपर रोक लगाने की मांग की है.

यही नहीं, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी आधार कार्ड निर्माण के प्रति गंभीर चिंता जाहिर करते हुए इसे भेदभाव बढ़ानेवाला, निजी सूचनाओं की रक्षा के लिए खतरा व उसकी चोरी की आशंका जताई है-एनएचआरसी न्यूज लेटर, अगस्त 2011, पेज नं.-7-8. जनगणना की सूची के खतरनाक इस्तेमाल का इतिहास में भी उदाहरण मौजूद है. आइबीएम कंपनी द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले जर्मनी की जनगणना के कार्य में संलग्न थी. उसने नस्ल के आधार पर 1933 में पहली बार यहूदियों की संख्या व सूची तैयार की जिसका इस्तेमाल बाद में यहूदियों के संहार में किया गया था. आज भी आइबीएम की नस्ली सूची तैयार करनेवाली मशीन वाशिंगटन डीसी के संग्रहालय में मौजूद है. हमारे देश में भी गुजरात दंगे के समय इसकी चर्चा जोरों पर थी कि वोटर लिस्ट का इस्तेमाल मुसलमानों के संहार में किया गया था. आधार कार्ड में रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटीफिकेशन ; त्थ्प्क्द्ध तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे लोगों का कुछ भी छुपा नहीं रहेगा और उसकी हरेक गतिविधि पर खुफिया नजर रखी जा सकती है. इस तरह आधार कार्ड न सिर्फ व्यक्ति की निजता बल्कि समाज की सुरक्षा व शांति के लिए बेहद खतरनाक है.

सुप्रीम कोर्ट तक ने 23 सितंबर 2013 के अपने फैसले में आधार कार्ड को विभिन्न सरकारी योजनाओं व सुविधाओं के लिए बाध्यकारी बनाए जाने का विरोध किया था – देखें परिशिष्ट 2. लेकिन तमाम आरोपों, आशंकाओं, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को ताख पर रखकर सरकार विभिन्न योजनाओं में आधार कार्ड का इस्तेमाल कर रही है.
देश के विभिन्न नागरिक संगठनों व गणमान्य व्यक्तियों के द्वारा भी आधार कार्ड का विरोध किया गया है. वे इस पूरे कार्यक्रम को नाटो और अमेरिकी रक्षा विभाग की अवधारणा की हू-ब-हू नकल बता रहे हैं – देखें परिशिष्ट-3.

महाशय, यह काफी दुखद है कि मतदाता को अंधेरे में रखकर मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने का कार्य काफी जोर-शोर से चलाया गया. आपने 2 मार्च 2015 को निर्वाचक नामावली के परिशोधन व प्रमाणीकरण के कार्य की घोषणा की और 29 मई 2015 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए इसे ऐच्छिक कार्य बताया. इस प्रकार करीब 3 महीने तक मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने का कार्य चलाया गया और जब काम काफी आगे बढ़ गया है, इसे ऐच्छिक बताया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के 23.09.2013 के आदेश को 2 मार्च 2015 को ही जारी किया जा सकता था और मतदाता को इसके ऐच्छिक स्वरूप की जानकारी दी जा सकती थी, लेकिन पता नहीं किन कारणों से ऐसा नहीं किया गया.
अतः हम आपसे अपील करते हैं कि मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़े जाने के खतरनाक कार्य पर तत्काल रोक लगाई जाए और अब तक आधार कार्ड से जोड़े गए पहचान पत्र के कार्य को निरस्त किया जाए.

भवदीय

श्याम चन्द्र चौधरी उर्फ कुणाल
बिहार राज्य सचिव
भाकपा -माले – लिबरेशन

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