नीतीश का भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का विरोध छलावा

माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि नीतीश सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध का ढोंग कर रही है और किसानों के लिए घडि़याली आंसू बहा रही है. भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ जदयू ने भूमि बचाओ धरना देने का फैसला किया है, लेकिन लेकिन बिहार में भागलपुर, बेगूसराय, पटना, भोजपुर आदि तमाम जिलों में किसानों से उनकी राय लिए बगैर नीतीश कुमार ने भूमि अधिग्रहण किया है. उचित मुआवजे की मांग पर बिहटा के किसान को अपना जीवन तक गंवाना पड़ा है. बियाडा की जमीन की बंदरबाट जगजाहिर है और उद्योग के नाम पर आवंटित ढेरों जमीन यूं ही परती पड़ी है. विकास के नाम पर कृषि योग्य अधिग्रहित जमीनों को औने-पौने दाम में पूंजीपतियों के हवाले कर दिया गया है, जिसपर कहीं शराब की फैक्टरी लगायी जा रही है, तो कहीं जानलेवा एस्बेस्टस के कारखाने लगाये जा रहे हैं. हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को निर्देश दिया है कि तमाम परती पड़ी जमीनें तत्काल पूंजीपतियों से वापस ले लिये जाएं. लेकिन सरकार ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है. इसलिए नीतीश द्वारा भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का विरोध ढोंग के सिवा कुछ नहीं है.
उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार कह रहे हैं कि कृषि विकास के बिना बिहार का विकास नहीं हो सकता है. तब, यह सवाल उठता है कि उन्होंने अपने ही द्वारा गठित भूमि आयोग की सिफारिशों को लागू क्यों नहीं किया. यदि आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया होता, तो निश्चित रूप से बिहार में जनपक्षीय विकास के रास्ते खुलते.
उन्होंने आगे कहा कि देश के दूसरे हिस्सों की तरह आज बिहार के किसान भी आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं. मनेर के बटाईदार किसान गजेन्द्र सिंह, नौबतपुर के रमेश सिंह और गया जिले के खिजरसराय के भरत शर्मा ने आत्महत्या की है. दानापुर दीयर के पुरानी पानापुर गांव के किसान भालू महतो ने डेढ़ लाख कर्ज लेकर परवल की खेती की, लेकिन भीषण गर्मी के कारण परवल की फसल सूख गई. निराश भालू महतो ने गंगा में कूदकर आत्महत्या कर ली. किसानों की आत्महत्या का प्रमुख कारण गरीबी और कर्ज का बोझ है. सरकार से हम मांग करते हैं कि किसानों के बैंक व महाजनी हर प्रकार के कर्ज की तत्काल मंसूखी, मृतक किसान के परिजन को सरकारी नौकरी और दस लाख मुआवजा दिया जाए.
सरकार ने किसानों से खरीदे गये करोड़ों रुपये के धान की कीमत आज तक चुकता नहीं किया है. इससे किसानों को काफी संकट का सामना करना पड़ रहा है. कहीं बेटी की शादी बाधित हुई है, तो कहीं बेटे की पढ़ाई. हम सरकार से तत्काल सूद के साथ तमाम किसानों को उनके धन की बकाया कीमत अदा करने की मांग करते हैं. धान की खेती का समय नजदीक आ गया है, लेकिन अभी तक गेहूं की खरीद शुरू करने के लिए सरकार ने गेहूं क्रय केंद्र नहीं खोला है. हम सरकार से तत्काल गेहूं क्रय केंद्र खोलने की मांग करते हैं. स्वामीनाथन आयोग ने दस एकड़ से नीचे के किसानों को बिना सूद के कर्ज देने और हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य में डेढ़ गुना वृद्धि की अनुशंसा की थी.
उन्होंने कहा कि भाजपा ने भी लोकसभा चुनाव के समय कीमत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने का वादा किया था, लेकिन किसानों का वोट हथिया लेने के बाद अब इसे लागू करने से मुकर रही है. दूसरी ओर मक्का आदि फसलों का आज तक कोई समर्थन मूल्य तय नहीं किया गया, जबकि बिहार के अनेक जिलों में मक्के की व्यापक खेती की जाती है. लेकिन सरकार ने अभी तक न तो मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है और न ही गेहूं के क्रय केंद्र खोले हैं. क्रय केंद्रों पर प्रशासनिक मिलीभगत से बिचैलियों की फसलें खरीदी जाती हैं और वास्तविक किसान व बटाईदार दर-दर की ठोकरें खाते रहते हैं. हाल ही में सीएजी ने 3400 करोड़ के धान खरीद घोटाला का अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है. हम धन खरीद घोटाले की सीबीआई जांच कराने और क्रय केंद्रों पर बिचैलियों के कब्जे को खत्म करने की मांग करते हैं.
बिहार की खेती बटाईदारों के जिम्मे है, लेकिन सरकार ने उनके लिए आज तक कोई कानून नहीं बनाया. विगत तूफान व ओलावृष्टि में बटाईदार किसानों की फसलें बर्बाद हो गयीं, लेकिन जमीन के मालिकाना कागज के नाम पर उन्हें फसल क्षति मुआवजा से वंचित किया जा रहा है. क्रय केंद्रों पर जमीन के मालिकाना कागज का बहाना बनाकर उनकी फसलें नहीं खरीदी जाती हैं और तमाम सरकारी सुविधाओं से इन्हें वंचित रखा जाता है. हम बटाईदार किसानों के पंजीकरण, उन्हें केसीसी सहित तमाम सरकारी सहूलियतें और फसल क्षति मुआवजा देने की मांग करते हैं.
आगे कहा कि फसल मुआवजा के वितरण में भारी धांधली चल रही है. किसान बैंक-ब्लाॅक का चक्कर लगा रहे हैं और प्रशासनिक मिलीभगत से ऐसे लोगों को मुआवजा मिल रहा है, जिन्होंने खेती नहीं की या जिनकी फसल नष्ट नहीं हुई. हम फसल मुआवजा वितरण में धंाधली पर रोक लगाने और मृतक किसानों के परिजनों को सरकारी नौकरी व 10 लाख रु. मुआवजे की भी मांग करते हैं. फसल मुआवजा के बारे में बीमा नीति किसान विरोधी है. किसी एक किसान की फसल नष्ट होने पर मुआवजे का प्रावधान नहीं है बल्कि प्रखंड स्तर पर 80 प्रतिशत फसल नष्ट होने के बाद ही मुआवजा मिलता है.
सरकार भूमिहीनों के लिए बार-बार 5 डिसमिल जमीन देने की बात कहती है. बिहार के करोड़ों गरीबों ने सरकार के पास आवेदन भी जमा किए, लेकिन सरकार ने इस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है, केवल बयानबाजी करते रहती है.

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