नीतीश राज में दलितों के न्यायिक संहार का सिलसिला लगातार है जारी

imagesपटना 24 अप्रैल 2016
भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि बाथे-बथानी-मियांपुर की तर्ज पर ही नालंदा के पांकी जनसंहार में भी गरीबों के साथ न्याय की बजाए अन्याय हुआ है और न्याय का संहार किया गया है. 16 अप्रैल 2000 में सामंती-अपराधियों द्वारा रचाये गये पांकी ( प्रखंड-सिलाव, नालंदा) में तीन दलितों विलास दास, मुंशी दास और वसंती पासवान की बर्बर हत्या कर दी गयी थी. इनमें दो रविदास जाति से थे और एक पासवान जाति से थे. नालंदा की निचली अदालत ने 22 आरोपियों को ठोस प्रमाण के अभाव में बरी कर दिया है, जबकि इस कांड का मुख्य अभियुक्त टुन्ना अभी तक फरार है, वह कुख्यात भाजपा संरक्षित अखिलेश गिरोह का आदमी रहा है. यह गरीबों के साथ घोर मजाक है.
माले राज्य सचिव ने कहा कि बाथे से लेकर पांकी तक की न्यायिक प्रक्रिया में बिहार सरकार की भूमिका बेहद नकारात्क रही है. आरोपियों के खिलाफ मजबूती से लड़ने की बजाए सरकार उन्हें आरोपमुक्त कराने के ही प्रयास में रही है. यही वजह है कि लालू राज में भाजपा संरक्षित सामंती-अपराधियों द्वारा रचाए गए कई जनसंहारों के आरोपी नीतीश राज में थोक भाव में रिहा कर दिए गए हैं. यह ‘न्याय के साथ विकास’ की सरकार में गरीबों का न्यायिक संहार है.
उन्होंने आगे कहा कि पांकी जनसंहार की पृष्ठभूमि में सामंती ताकतों द्वारा गरीब-दलित समुदाय से आने वाली महिलाओं का उत्पीड़न है. दलित टोले की महिलायें जब शाम में शौच जाती थीं, तो ये सामंती ताकतें उनके साथ छेड़खानी किया करते थे. इसका दलित टोले ने जमकर विरोध किया था. तत्पश्चात जब दलित टोला में नली-गली का निर्माण होने लगा तो दबंगों ने एक बार फिर से उसमें अड़ंगा डाला और कहा कि निर्माण कार्य की ठेकेदारी उनकी होगी. इस सवाल पर उन लोगों ने दलित समुदाय के लोगों को मारा पीटा. 14 जनवरी 2000 को गांगो दास की हत्या भी कर दी गयी. मुकदमा दर्ज किया गया और कुछ लोगों की गिरफ्तारी हुई. जेल से लौटने के बाद इन्हीं सामंती-अपराधियों ने तीन लोगों की हत्या कर दी.

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