प्रेस हैंड आउट : बिहार की तथाकथित सामाजिक न्याय की सरकार दलित छात्रों को कर रही आत्महत्या के लिए मजबूर -दीपंकर

प्रेस हैंड आउट
बिहार की तथाकथित सामाजिक न्याय की सरकार दलित छात्रों को कर रही आत्महत्या के लिए मजबूर -दीपंकर
शिक्षा में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार, अराजकता व अनियमितता के खिलाफ शिक्षा सुधार व कैंपस लोकतंत्र के सवाल को लेकर संघर्ष को देनी होगी नई गति
पटना आटर््स काॅलेज मामले में प्राचार्य को बर्खास्त करके कराई जाए न्यायिक जांच
टाॅपर्स घोटाले के राजनीतिक कनेक्शन की संपूर्णता में जांच के लिए उच्चस्तरीय जांच कमिटी का किया जाए गठन.

पटना 15 जून 2016
पटना आटर््स व क्राफ्ट काॅलेज में दलित समुदाय से आने वाले छात्र नीतीश कुमार द्वारा आत्महत्या की कोशिश ने रोहित वेमुला परिघटना को पूरी तरह से ताजा कर दिया है. बिहार में पिछले कई वर्षों से तथाकथित सामाजिक न्याय की ही सरकार चल रही है, लेकिन इस सरकार ने भी कैंपसों को छात्रों और खासकर दलित छात्रों के लिए कत्लगाह बना दिया गया है. दलित समुदाय से आने वाले छात्र सामाजिक तौर पर उत्पीड़ित हो रहे हैं और उन्हें आत्महत्या की ओर धकेला जा रहा है. यह बेहद शर्मनाक है.
पटना आटर््स काॅलेज में पिछले 4 वर्षों से सत्ता की नजदीकी की वजह से एक अयोग्य आदमी प्राचार्य के पद पर आसीन है. जिस तरह से देश के विभिन्न हिस्सों में चाहे एफटीआईआई का मामला हो या फिर सेंसर बोर्ड का, अयोग्य व्यक्तियों और अपने चाटुकारों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाने का काम केंद्र सरकार कर रही है, ठीक उसी प्रकार नीतीश सरकार भी अयोग्य व्यक्तियों को आगे करके शिक्षण संस्थानों को बर्बाद करने पर तुली है. पटना आटर््स काॅलेज जैसे क्रिएटिव कैंपस की शानदार विरासत रही है, इस विरासत को बर्बाद व बदनाम करने की कोशिशों को बिहार की जनता कभी स्वीकार नहीं करेगी.
‘संघमुक्त भारत’ की बात करने वाले नीतीश कुमार पूरी तरह भाजपा के रास्ते पर हैं. जिस प्रकार से भाजपा और उसका छात्र संगठन एबीवीपी पूरे देश में विरोध की आवाज को दबा देने पर आमदा हंै, ठीक उसी तर्ज पर नीतीश कुमार और उनका छात्र संगठन छात्र समागम छात्रों की विरोध की आवाज को लाठी-गोली के बल पर दबाने में लगी हुई है और कैंपसों में जो भी लोकतंत्र शेष है, उसे समाप्त कर देना चाहती है.
पटना आटर््स काॅलेज की घटना कोई अलग-थलग घटना नहीं है, बल्कि बिहार में घोर शैक्षणिक अराजकता व कैंपसो को कत्लगाह बनाने का एक उदाहरण भर है. दूसरा उदाहरण यह है कि यदि जेएनयू में छात्रों को ‘देशद्रोही’ कहकर उत्पीड़ित किया जा रहा है, तो पटना विश्वविद्यालय में उन्हें ‘आतंकवादी’ कहकर उत्पीड़ित किया जा रहा है. जेएनयू, एचसीयू, बीएचयू, जेयू आदि संस्थानों की कड़ी में अब पटना विश्वविद्यालय का भी नाम जुड़ गया है, जो आजकल एकैडमिक गतिविधियों की बजाए छात्रों के दमन व उत्पीड़न के कत्लगाह बना दिये गये हैं.
शैक्षणिक अराजकता की अगली कड़ी में बिहार में टाॅपर्स घोटाला भी शामिल है. इस घोटाले में अब राजनीतिज्ञों के भी नाम आ रहे हैं. इससे जाहिर होता है कि पिछले 10 वर्षों से बिहार के शैक्षणिक क्षेत्र में राजनीतिक संरक्षण व कनेक्शन में खुलकर फर्जीवाड़ा का खेल जारी है. बिहार की नीतीश सरकार ने शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए कोई प्र्रयास तो नहीं ही किया, यहां तक कि मुचकुंद दूबे आयोग की सिफारिश को भी रद्दी की टोकरी में फेंक दिया, उलटे फर्जीवाड़े का खेल बेधड़क जारी रहा. टाॅपर्स घोटाले ने इस शैक्षणिक फर्जीवाड़े पर से पर्दा हटाया है, लेकिन इसकी संपूर्णता में जांच होनी चाहिए. हमारी मांग है कि इसके राजनीतिक कनेक्शन व संरक्षण को भी जांच के दायरे में लाया जाए और किसी शिक्षाविद् की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय जांच टीम का गठन करके इस मामले की संपूर्णता में जांच करानी जाए.
देश भर में बिहार से जुड़े हुए छात्र नेताओं ने शिक्षा में सुधार के सवाल पर जबरदस्त लड़ाइयां लड़ी हैं. नब्बे के दशक में जहां काॅ. चंद्रशेखर ने जेएनयू जैसे संस्थानों में सामाजिक तौर पर पिछड़े समुदाय के छात्रों के लिए कई सफल लड़ाइयां लड़ीं तो आज की तारीख में कन्हैया, आशुतोष और चिंटू कुमारी जैसे छात्र नेता केंद्र सरकार की दमनकारी नीतियों को झेलते हुए देशव्यापी छात्र आंदोलन का सफल नेतृत्व कर रहे हैं. बिहार के इन छात्र नेताओं को बिहार में भी शिक्षा सुधार के इस आंदोलन का भी भागीदार बनना चाहिए.

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आटर््स काॅलेज मामले में गिरफ्तार सभी छात्रों की रिहाई, छात्र नेताओं पर किये गये फर्जी मुकदमे व निलंबन की वापसी, पुनः परीक्षा का आयोजन, प्राचार्य की बर्खास्तगी ऐसी मांगें हैं, जिस पर सरकार को अविलंब हस्तक्षेप करना चाहिए और छात्रों की मांगें माननी चाहिए. साथ ही पटना विश्ववि़़द्यालय के कुलपति को भी जांच के दायरे में लाना चाहिए. बीपीएससी सहित अन्य संस्थाओं, रोजगार के लिए संघर्शरत छात्र-युवाओं के सवालों व मांगों को राज्य सरकार द्वारा बार-बार नकारा जा रहा है. यह बेहद खतरनाक है
दीपंकर भट्टाचार्य ( महासचिव, भाकपा-माले) काॅ. धीरेन्द्र झा (पोलित ब्यूरो सदस्य) काॅ. अमर ( पोलितब्यूरो सदस्य )

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