शराब से हुई मौतें प्रशासन और शराब माफियाओं के नापाक गठजोड़ का परिणाम: माले

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पटना 19 अगस्त 2016

गोपालगंज में जहरीली शराब से बड़े पैमाने पर हुई मौत के लिए सीधे तौर नीतीश सरकार द्वारा शराबबंदी पर लाया गया काला कानून और जिला प्रशासन व सदर अस्पताल का गैरजिम्मेवाराना रवैया दोषी है. जिला प्रशासन लंबे समय तक जहरीली शराब से मौत से ही इंकार करती रही. वहीं, सदर अस्पताल में सिविल सर्जन कहते रहे कि ‘तुम सब लोग फंस जाओगे, सबको सजा हो जाएगी और इस तरह उन्होंने अस्पताल से केवल रेफर करने का काम किया. यही वजह थी कि मरने वालों की संख्या 17 तक पहुंच गई. भाकपा-माले की जांच टीम को यह भी पता चला कि शराबबंदी पर कड़े कानून की वजह से कई लोग अस्पताल ही नहीं पहुंचे और इस तरह मरने वालों की संख्या कहीं अधिक है.

हमारी जांच टीम को पता चला कि 18 अगस्त को शहर में अखाड़ा को लेकर जिला प्रशासन ने एक जिला स्तरीय शांति समिति की बैठक बुलाई थी. इस बैठक में भी भाकपा-माले ने शहर के अंदर खजूरबानी में शराब की बिक्री का ठोस तथ्य प्रशासन उपलब्ध कराया था और इस पर रोक लगाने की मांग की थी. लेकिन जिला प्रशासन ने इसे मानने से इंकार कर दिया. बैठक से ही एसपी ने किसी को फोन किया और कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है. जबकि खजूरबानी में शराब बनाने की बात पूरे शहर को पता है. ऐसे में स्वाभाविक सवाल उठता है कि प्रशासन को इसकी कैसे जानकारी नहीं है? यदि समय रहते जिला प्रशासन ने उचित कदम उठाये होते, तो इस दर्दनाक हादसे को रोका जा सकता था. मरने वालों में (दीनानाथ मांझी, परमा महतो, मंटू गिरी, उमेश चैहान, शशिकांत शर्मा, रामजी शर्मा, सोवराती मियां, अनील राम, राजू राम, दुर्गेश राम, विनोद सिंह, दिनेश महतो, बंधु राम, धर्मेन्द्र महतो, प्रेमचंद सिंह, मनोज साह, भुटेली शर्मा) शामिल हैं. जिला प्रशासन के इस आपराधिक लापरवाही के लिए वहां के डीएम व एसपी को तत्काल पद से निलंबित किया चाहिए.

नीतीश सरकार ने पहले पूरे बिहार को शराब में डुबोया और अब वह ‘शराबबंदी’ पर राजनीति चमका रही है. जबकि उसे शराबबंदी की वजह से जिन समुदायों का परंपरातगत पेशा नष्ट हुआ, उनके लिए उसे वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिए थी. ऐसा कहीं नहीं हो रहा है. गोपालगंज की दर्दनाक घटना ने इस सच की ओर भी इशारा किया है कि बिना राजनीतिक-प्रशासनिक संरक्षण के शराब की बिक्री संभव नहीं है. एक तरफ सरकार शराबबंदी का प्रचार चला रही है, तो दूसरी ओर राजनेता-प्रशासन व शराब माफियाओं का गठजोड़ शराब के उत्पादन व तस्करी में लगा हुआ है. उत्तरप्रदेश से सटे जिलों में शराब की तस्करी खुलेआम हो रही है, और यह सरकार व प्रशासन को भी अच्छे से पता है. इसलिए ‘शराबबंदी’ पर राजनीति की बजाए बिहार में शराब की फैक्ट्रियों को तत्काल बंद किए जाने चाहिए और तस्करी पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए.

शराब का सेवन कोई आपराधिक कृत्य नहीं, बल्कि एक सामाजिक बुराई है. लेकिन शराबबंदी को लेकर सरकार ने जो काला कानून बनाया है, वह कहीं से उचित नहीं है. इस काले कानून को अविलंब वापस किया जाए और शराब से छुटकारा दिलाने के लिए आपराधिक व्यवहार की बजाए नशा से पीड़ितों के पुनर्वास व सुधार के उपायों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

गोपालगंज की घटना के खिलाफ 20 अगस्त को भाकपा-माले ने गोपालगंज में प्रदर्शन का भी कार्यक्रम लिया है.
जांच टीम में भाकपा-माले विधायक दल के नेता महबूब आलम, राज्य स्थायी समिति सदस्य काॅ. राजाराम व गोपालगंज जिला सचिव काॅ. इंद्रजीत चैरसिया तथा सिवान जिला सचिव काॅ. नईमुद्दीन असंारी शामिल थे.

महबूब आलम राजाराम
नेता विधायक दल, भाकपा-माले राज्य स्थायी समिति सदस्य, भाकपा-माले

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