बिन्दुखत्ता की थाती है – लाल झंडा थामे, लड़ने का जज्बा

6 सितम्बर को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने नैनीताल जिले के बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाए जाने का फैसला वापस लेने का ऐलान किया. दरअसल जब लगभग डेढ़ वर्ष पहले बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनने की घोषणा उत्तराखंड सरकार ने की थी, तभी अखिल भारतीय किसान महासभा और भाकपा(माले) ने इसका विरोध करते हुए, राजस्व गाँव बनाने की बिन्दुखत्ता की दशकों पुरानी मांग को पूरा किये जाने का सवाल उठाया था. इस मामले पर भाकपा(माले) और अखिल भारतीय किसान महासभा की त्वरित पहलकदमी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि 18 दिसम्बर 2015 को बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाने की अंतरिम अधिसूचना जारी हुई और 20 दिसम्बर 2015 को भाकपा(माले) और अखिल भारतीय किसान महासभा द्वारा नगरपालिका बनाए जाने के खिलाफ, लिखित आपत्तियां लालकुँआ तहसील के जरिये और फैक्स द्वारा शहरी विकास विभाग को भेज दी गयी.

भाकपा(माले) और अखिल भारतीय किसान महासभा ने सुनिश्चित किया कि नगरपालिका की घोषणा की आड़ में बिन्दुखत्ता को राजस्व गाँव बनाए जाने की, तकरीबन चार दशक से अधिक पुरानी लड़ाई को किनारे न धकेल दिया जाए. इस इलाके में लोगों को जमीन पर मालिकाना अधिकार दिलाने की यह लड़ाई भाकपा(माले) और उसके जनसंगठन सत्तर के दशक से लड़ते आये हैं. इस सतत संघर्ष का ही परिणाम है कि बिन्दुखत्ता को राजस्व गाँव बनने की मांग को सभी राजनीतिक पार्टियों को अपने घोषणा पत्र में शामिल करना पड़ा है. वर्तमान में लालकुँआ क्षेत्र के निर्दलीय विधायक और कांग्रेस सरकार में मंत्री हरीश चन्द्र दुर्गापाल के घोषणापत्र में भी बिन्दुखत्ता को राजस्व गाँव बनाने का वायदा शामिल था. लेकिन सरकार में मंत्री बनने के बाद दुर्गापाल ने राजस्व गाँव की मांग की ओर पीठ फेरते हुए इस इलाके को नगरपालिका घोषित करवा दिया.

लोग नगरपालिका नहीं राजस्व गाँव चाहते हैं, यह 28 जनवरी 2015 को अखिल भारतीय किसान महासभा द्वारा आयोजित किसान महापंचायत से ही स्पष्ट हो गया था. हजारों की तादाद में महिला, पुरुष लाल झंडा थामे लालकुँआ की सड़कों पर राजस्व गाँव और जमीन के मालिकाना अधिकार के पक्ष में नारे लगाते हुए उतरे. कोई भी जनता की राय की परवाह करने वाली सरकार होती तो उक्त रैली में उमड़े जनसैलाब को देख कर अपने फैसले को दुरुस्त कर लेती. पर चूँकि राज्य सरकार और उसकी प्राथमिकता में जमीन है, अपने कार्यकर्ता व उनकी ठेकेदारी है और जनता, उनकी प्राथमिकताओं के अंतिम पायदान से भी नीचे है. इसलिए लालकुआं में आज तक हुए सबसे बड़े प्रदर्शनों में से एक या कि संभवतः सबसे बड़े प्रदर्शन की अवहेलना करना ही सरकार की सर्वाधिक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी. इस आन्दोलन की अगुवाई करने वाले अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष और भाकपा(माले) की राज्य कमेटी के सदस्य कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा ने उस समय आरोप लगाया था कि “राज्य सरकार और स्थानीय विधायक ने बिन्दुखत्ता की बेशकीमती जमीनों को भू माफिया के हवाले करने के लिए नगरपालिका का दांव चला है. उनके लिए माफिया बिल्डरों के हित सर्वोपरि हैं, इसलिए वे जनता के हितों और उसकी राय की अवहेलना कर रहे हैं. ”बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाते समय हरीश रावत सरकार न केवल जनमत की अवहेलना कर रही थी, बल्कि अपने शहरी  विकास विभाग की राय पर भी गौर करना, सरकार ने गवारा नहीं किया. शहरी विकास निदेशालय में संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी ने दिसम्बर 2014 में इस लेखक को बताया था कि शहरी विकास विभाग के सचिव ने बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाए जाने के खिलाफ लिखित राय दी थी. अपने बात स्पष्ट करते हुए उक्त संयुक्त निदेशक रैंक के अफसर ने कहा कि “हम जब किसी जगह को नगरपालिका घोषित करेंगे तो अधिसूचना में यही तो लिखेंगे कि फलां-फलां राजस्व गाँव के खसरा संख्या – इतने से इतने को नगरपालिका बनाया जाता है. यह तो नहीं लिख सकते ना कि फलां-फलां वन प्रभाग के कम्पार्टमेंट संख्या इतने-इतने को नगरपालिका बनाया जाता है. ”धरातल पर जनता विरोध कर रही थी और प्रशासनिक स्तर पर अफसर इसकी मुखालफत कर रहे थे. तब फिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि हरीश रावत बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाए जाने पर अड़े रहे? इस रौशनी में तो कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा के आरोप सही मालूम पड़ते हैं.

बिन्दुखत्ता, लालकुआं में प्रदर्शनों के बाद बिन्दुखत्ता से नगरपालिका वापसी और राजस्व गाँव बनाने की मांग को लाल झंडा थामे हजारों की तादाद में लोग देहरादून आये. 17 मार्च 2015 को इन्होने विधानसभा पर प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन के दौरान एक पुलिस अधिकारी जिनकी उम्र 50 वर्ष से अधिक रही होगी, अपने साथी पुलिस अधिकारी से कह रहे थे कि “कितनी पुरानी मांग है बिन्दुखत्ता की, जब हम पढ़ते थे तब से सुनते आये हैं, लेकिन कोई इनकी सुनवाई करता ही नहीं है.” इस विधानसभा घेराव में प्रशासन के मार्फत मुख्यमंत्री से वार्ता का प्रस्ताव प्रदर्शनकारियों तक पहुंचा. इस पर कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा, बिन्दुखत्ता के भूमि संघर्ष के अगुवा नेता कामरेड बहादुर सिंह जंगी, भुवन जोशी, भाकपा(माले) के नैनीताल जिला सचिव कामरेड कैलाश पाण्डेय आदि का प्रतिनिधिमंडल विधानसभा में मुख्यमंत्री हरीश रावत से मिला. मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त करते हुए कहा कि बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाना सरकार की कोई जिद नहीं है. उन्होंने कहा कि वे अपने लोगों से पूछेंगे और अगर लोग नहीं चाहेंगे तो नगरपालिका नहीं बनेगी. लेकिन मुख्यमंत्री का यह  आश्वासन चौबीस घंटे भी नहीं टिक सका और उससे पहले ही कालकवलित हो गया. मुख्यमंत्री से आश्वासन लेकर लोग ट्रेन से अगले दिन जब बिन्दुखत्ता पहुंचे तो अखबारों में राज्य सरकार द्वारा बिन्दुखत्ता नगरपालिका का प्रशासक नियुक्त किये जाने की खबर उनका स्वागत कर रही थी. लोगों के लिए यह समझ पाना मुश्किल था कि जो देहरादून में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उनसे कहा, वह सच था या जो अखबार में छपा है, वह सच है! मुख्यमंत्री हरीश रावत के आश्वासन देने और प्रशासक नियुक्त किये जाने के इस घटनाक्रम में एक दिक्कततलब बात और थी. हो सकता है कि राजनेता के तौर पर गोलमोल बात करना, जनता को भ्रम में रखना हरीश रावत उचित और अपरिहार्य समझते हों, इसे लोग झेल भी सकते हैं. लेकिन राज्य का मुख्यमंत्री गलतबयानी करे, नीतिगत मसलों पर लोगों को भ्रम में रखे, उसके कहने के ठीक विपरीत कार्यवाही हो, यह न तो उचित है और न स्वीकार्य.

लेकिन बिन्दुखत्ता के लोगों का संघर्ष न तो प्रशासक नियुक्त करने पर रुका और ना ही नगरपालिका के उद्घाटन की घोषणा पर. इस बीच में नगरपालिका वापसी के लिए लालकुआं तहसील में धरना और अनशन भी चलाया गया. साथ ही उच्च न्यायालय, नैनीताल में जनहित याचिका भी दाखिल की गयी. चूँकि उत्तराखंड सरकार के पास बिन्दुखत्ता में नगरपालिका बनाने के निर्णय को सही साबित करने का कोई ठोस कानूनी आधार था ही नहीं, इसलिए उच्च न्यायालय में मामले को लटकाए रखने के पैंतरे ही राज्य सरकार ने अजमाए. जहाँ एक और उच्च न्यायालय में राज्य सरकार जवाब तक दाखिल नहीं कर रही थी, वहीँ धरातल पर वह बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाने की अपनी हठ को पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी. इसी क्रम में स्थानीय विधायक और उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री हरीश चन्द्र दुर्गापाल द्वारा बिन्दुखत्ता में नगरपालिका कार्यालय के उद्घाटन का उपक्रम 14 अक्टूबर 2015 को किया गया. इस कदम का भी बिन्दुखत्ता की जनता ने तीव्र प्रतिवाद किया. मंत्री के काफिले का घेराव हुआ, काले झंडे दिखाए गए. पुलिस और मंत्री समथकों द्वारा नगरपालिका का विरोध करने वालों के साथ जम कर अभद्रता की गयी. इसके खिलाफ मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग आदि जगहों पर शिकायतें दर्ज की गयी. महिलाओं के साथ अभद्रता करने वाले पुलिस कर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का पत्र वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नैनीताल को भेजा गया पर इसमें ग्यारह महीने बाद तक पुलिस बयान ही ले रही है. दूसरी और पुलिस ने 47 नामजद और 250 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. लेकिन आन्दोलनकारियों के हौसले मुकदमों से भी नहीं डिगे और ना ही वे पुलिस द्वारा चिन्हित तरीके से डराए-धमकाए जाने के अंदाज में की गयी पूछताछ से ही घबराए. आन्दोलन का दबाव और जनता के संघर्ष के जज्बे का ही परिणाम था कि पुलिस उक्त मामले में कोई गिरफ्तारी करने का साहस नहीं जुटा पायी. अलबत्ता लोगों को धरना, प्रदर्शनों में आने से रोकने की कोशिश में पुलिस अप्रत्यक्ष रूप से लोगों को डराती-धमकाती जरुर रही. आन्दोलन की अगुवाई कर रहे कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा तो पुलिस और विशेष तौर पर लालकुआं के कोतवाल पर मंत्री के कार्यकर्ता की तरह काम करने का आरोप लगाते हैं. राज्य सरकार द्वारा इस वर्ष लालकुआं के कोतवाल बी.सी.पन्त को स्वतंत्रता दिवस के दिन सम्मानित किया गया. स्वाभाविक तौर पर यह प्रश्न तो उठता ही है कि क्या यह सम्मान, पिछले डेढ़ वर्ष के दौरान बिन्दुखत्ता में पालिका विरोधी आन्दोलन में कानून के दायरे से बाहर जाकर की गयी उनकी ‘सेवाओं’ के लिए है?

यह घोषणा होने के बाद कि बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाने का फैसला वापस ले लिया गया है तो कुछ सवाल स्वाभाविक तौर पर पैदा होते हैं. जब पहले पहल नगरपालिका बनाने की घोषणा हुई तो कांग्रेसियों और श्रम मंत्री दुर्गापाल के लोगों ने नगरपालिका का विरोध करने वालों को विकास विरोधी करार दिया था. आज सवाल यह कि बिन्दुखत्ता से नगरपालिका वापस लेकर राज्य सरकार, श्रम मंत्री स्वयं इन विकास विरोधियों के रास्ते पर क्यूँ चल पड़े हैं? क्या चुनावी हार के डर से वे उस रास्ते चल रहे हैं, जिसको वे चिल्ला-चिल्ला कर विकास विरोधी ठहरा रहे थे? सवाल यह भी उठता है कि लोगों को उनकी जमीन पर मालिकाना अधिकार मिले, यह मांग विकास विरोधी कैसे है? जो लोगों की जमीन बिकवाने का इंतजाम कर दे, वह विकास समर्थक और जो लोगों की जमीन पर उनके मालिकाना अधिकार की मांग उठाये, वह विकास विरोधी? सवाल तो यह भी कि बिन्दुखत्ता में पौने तीन सौ लोगों पर मुकदमा तो नगरपालिका का विरोध करने के लिए किया गया था, आज जब नगरपालिका को सरकार द्वारा ही रद्द कर दिया गया है तो यह मुकदमा किस बात का है और क्यूँ चलना चाहिए?

चार दशक से लाल झंडा थामे बिन्दुखत्ता निरंतर सत्ता को चुनौती देता रहा है. यहाँ सडक, बिजली, राशन कार्ड जैसी तमाम सुविधाएं लोगों ने संघर्ष करके हासिल की हैं. राज्य सरकार को नगरपालिका वापस लेने के लिए विवश करके, एक बार फिर यहाँ की जनता ने जमीन पर अपने मालिकाना अधिकार पाने की लडाई का एक मोर्चा फतह किया है. हालांकि राजस्व गाँव बनने के लिए अभी और संघर्ष की दरकार है. पर


-इन्द्रेश मैखुरी

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