सरकार व प्रशासन तमाम तरीके से उपनल कर्मचारी आंदोलन विफल करने की कोशिश में

हल्द्वानी, 2 जुलाई 2016

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(माक्र्सवादी-लेनिनवादी) की राज्य कमेटी ने देहरादून मेें उपनल कर्मचारियों पर के आंदोलन को सरकार व प्रशासन द्वारा तमाम तरीके से विफल करने की कोशिश की आलोचना की और उपनल कर्मचारियों की मांगे तुरंत मानने की मांग प्रदेा सरकार से की।

प्रेस को जारी एक बयान में भाकपा(माले) के राज्य सचिव राजेन्द्र प्रथोली ने कहा कि उत्तराखण्ड सरकार प्रदेा भर के कर्मचारियों के हजारों खाली पदों पर सरकारी नियुक्ति नहीं कर रही है। सरकारी नियुक्ति की जगह सरकार अपनी ठेकेदार एजेंसी उपनल द्वारा पिछले कई सालों से कर्मचारियों की भर्ती कर रही है। सरकार यह सब सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ने का बहाना देकर कर रही है। इसलिए सरकार उपनल कर्मचारियों का नियमतीकरण करने के बजाय समय समय पर कर्मचारियों को निकालने का जनविरोधी काम कर रही है। यहां तक की उपनल द्वारा भर्ती कर्मचारियों को मिलने वाले बहुत ही कम वेतन को भी सरकार समय से नहीं दे रही है और जब कर्मचारी वेतन वृद्धि की मांग कर रहे हैं तो सरकार ने मामूली सी वेतन वृद्धि की घोषणा की वह भी कर्मचारियों को नहीं मिल रहा है। सरकार के इन जनविरोधी व कर्मचारी विरोधी फैसले से कर्मचारियों का आंदोलित होना स्वाभाविक है। सरकार की ठेकेदार एजेंसी उपनल कर्मचारियों की शोषण की एजेंसी बनकर रह गयी है।

राजेन्द्र प्रथोली ने कहा कि अपनी मांगों को लेकर प्रदेश भर में आंदोलित उपनल कर्मचारियों पर देहरादून में कांग्रेस की हरीा रावत सरकार द्वारा पिछले दिनों देहरादून में बर्बर लाठीचार्ज और हल्द्वानी में उपनल कर्मचारियों से पुलिस द्वारा अभद्रता करना दिखाता है कि किस तरह से प्रदेश सरकार कर्मचारियों के श्रम की लूट अपने नेताओं-मंत्रियों के हितों के लिए कर रही है और अपना हक मांगने वाले कर्मचारियों पर दमन ढा रही है। भाकपा(माले) सरकार द्वारा कराये गये लाठीचार्ज का सख्त विरोध करती है और उपनल कर्मचारियों की वेतनवृद्धि, नियमतीकरण और निकाले गये कर्मचारियों की बहाली जैसी तीनों मांगों को बिना शर्त मानने की मांग सरकार से करती है।

केन्द्र सरकार द्वारा 7वें वेतन आयोग की सिफारिाों पर मुहर लगाने के फैसले पर राजेन्द्र प्रथोली ने कहा कि यह वेतन आयोग बिल्कुल भी कर्मचारियों के पक्ष में नही है। अभी तक जितने वेतन आयोग लागू हुए है उनकी तुलना में यह वेतन आयोग मूल वेतन में सबसे कम वृद्धि की गयी है। सरकारी कर्मचारियों का मूल वेतन 26 हजार रूपये करने की मांग महंगाई को देखते हुए उचित है सरकार को  कर्मचारियों की इस मांग को तुरंत स्वीकार करना चाहिये।

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