दिल्ली चुनाव के नतीजे के बाद उतराखंड

दिल्ली चुनाव के नतीजे के बाद उतराखंड में आगामी 2017 में दिल्ली दोहराने की चर्चा गरमा रही है।जमीनी सच्चाई यह है कि इसे उत्तराखंड में दोहराना तो दूर उस दिशा में बढना असंभव है जब तक कि दिल्ली जीतने के लिए किए गए कठोर प्रयास और योजना के अनुभव से सीखने की दृढ़ इच्छा न हो।

दिल्ली की सफलता की खास बात यह रही कि वहां आम जनता की रोजमर्रा की समस्याओं को लेकर समाज के सबसे कमजोर और शोषित हिस्सों की गोलबंदी पर आप पार्टी ने विशेष ध्यान दिया और दिल्ली के कोने कोने तक एक सार्थक विकल्प के निर्माण हेतु प्रचार आभियान के लिए हजारों पढे लिखे युवा कार्यकर्ताओं को तैयार किया। इस संगठित शक्ति ने ही जीत हेतु नेटवर्क तैयार किया। युवा श़क्ति ने आम जनता से सीधा संवाद कर सभी परंपरागत तरीकों को धता बताते हुए एक व्यापक जन गोलबंदी करते हुए धर्म, जाति, लिंग भेद को वहां पनपने ही नहीं दिया। परिणाम स्वरूप दिल्ली की जनता ने दिल्ली में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के पराक्रम को धो डाला। नए विकल्प के लिए ह्जारों कार्यकर्ताओं के अंदर एक आत्मविश्वास का सृजन इस अनूठे प्रयोग की खास बात रही। निश्चित ही इस प्रयोग की कडी परीक्षा इस बात में निहित है कि कांग्रेस-भाजपा द्वारा पोषित देश को बर्बाद करने वाली जन विरोधी आर्थिक नीतियों से यह प्रयोग कैसे दो चार होता है?

अब जहां तक उत्तराखंड की बात है तो यहां राज्य बनने के बाद कांग्रेस-भाजपा की लूट खसोट की राजनीति चली है – उसने आंदोलनकारियों के बढे हिस्से को पतित कर दिया है। यू०के०डी० का पतन जग जाहिर है और आज उत्तराखंड में आप की टोपी लगाकर जनता का खैर ख्वाह बनने की कोशिश कर रहे हैं – उनमें से कई कांग्रेस-भाजपा सरकारों के समक्ष दरबारी से रहे हैं। असल में उत्तराखंड में एक नए राजनीतिक विकल्प के लिए आत्म विश्वास पैदा करने के लिए एक नई साझा राजनीतिक संस्कृति का सूत्रपात करना होगा। इस हेतु तय करना होगा कि

  1. भाजपा-कांग्रेस से कोई समझौता नहीं।
  2. राज्य आंदोलनकारी की सुविधा और सर्टिफिकेट मांगने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर विराम।
  3. उत्तराखण्ड के विकास के लिए जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए एक जुटता और इस सोच को केन्द्र में रखते हुए शिक्षा, स्वास्थय, पानी व अन्य सभी बुनियादी सुविधाओं के लिए चरणबद्ध आंदोलन।
  4. धर्म, जाति व लिंग भेद के विरुद्ध संघर्ष करते हुए मजदूर, किसान, महिला, छात्र व युवाओं की गोलबंदी।
  5. राज्य बनने के बाद हुए घोटालों की सी०बी०आई० जांच की मांग।
  6. आपदाओं से सबक लेते हुए विकास हेतु एक तथ्यात्मक व सांइटिफिक नीति का निर्माण।

उपरोक्त के अलावा और भी जरूरी बिन्दु हैं जिन्हें जोडा जा सकता है। लेकिन इसे साझा प्रयासों से ही किया जा सकता है। यदि हम विचार व बदलाव के लिए तत्पर मित्र तैयार हों तो निकट भविष्य में साझा रणनीति तैयार की जा सकती है।

Back-to-previous-article
Top