हरीश रावत राज्य से अधिक मेलों के मुख्यमंत्री होते जा रहे हैं. मेलों में उनके जाने की यदि यही गति रही तो वे गिनिज बुक में सर्वाधिक मेलों का उद्घाटन करने वाले मुख्यमंत्री के रूप में स्वयं को दर्ज किये जाने का दावा पेश कर सकते हैं. दरअसल जैसे मोदी विदेश घूम कर प्रधानमन्त्री बनने का उत्सव मना रहे हैं, वैसे ही हरीश रावत मेलों में घूम-घूम कर मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी का उत्सव मना रहे हैं. ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री के मन का मोर, मेला नाम सुनते ही हेलीकाप्टर पर चढने को मचल उठता है. वह मेला किसका है, क्यूँ है, किसके नाम पर, इससे हरीश रावत जी का कोई सरोकार नहीं है.
देखिये न कल 11 जनवरी को वे कीर्तिनगर में नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी के नाम पर आयोजित होने वाले मेले में उपस्थित थे. नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी 11 जनवरी 1948 को टिहरी राजशाही से लड़ते हुए शहीद हुए थे. वही राजशाही जिसके वारिस मानवेन्द्र शाह को हरीश रावत जी की पार्टी ने 1957 से 70 तक संसद पहुँचाया और अब राजशाही की वंशज को संसद पहुंचाने का जिम्मा भाजपा के कन्धों पर है. नागेन्द्र सकलानी, मोलू भरदारी का मेला करवाने वाले और उनके हत्यारों का चुनावी बस्ता ढोने वाले लोग चूँकि एक ही हैं, इसलिए इस मेले में नागेन्द्र सकलानी, मोलू भरदारी नाम भर हैं. असल मकसद तो मेला है, उत्सव है, बजट है. चूँकि असल मकसद आयोजकों का मेला है, मुख्यमंत्री का मेला भ्रमण है, इसलिए न आयोजकों की समझ में आया कि मेले के बैनर पर शहीद का नाम ही गलत लिख दिया गया है और न मेला घुमन्तु मुख्यमंत्री को नजर आया कि जिस मंच से वे शहीदों के बालिदान को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का आह्वान कर रहे हैं, उस मंच पर तो शहीद का नाम ही गलत लिखा हुआ है. शहीद हुए थे मोलू सिंह भरदारी और बैनर पर छपा था-भोलू सिंह. वैसे भी फ्लेक्स पर जितना बड़ा फोटो हरीश रावत और किशोर उपाध्याय का छपा था और शहीदों का नाम बारीक अक्षरों में छपा था (वो भी एक का गलत) तो उससे स्पष्ट है कि मेला तो नागेन्द्र सकलानी, मोलू भरदारी के नाम पर भले हो, पर था तो हरीश रावत के निमित ही. इसलिए शहीद का नाम भले ही गलत छप जाए पर हरीश रावत का फोटो बड़ा, अपेक्षाकृत युवा अवस्था वाला और चमकता हुआ छपना चाहिए.
लेकिन हरीश रावत साहब इन शहीदों का अस्तित्व न तो आपके भाषणी लच्छों से है, न इनके नाम पर मेला का कारोबार चलाने वालों से इनकी हस्ती है. आप नाम न लो, गलत लिखो, इनके बलिदानों की गाथा तो कायम रहेगी. पर लानत है आप पर कि आपको, अपनी फोटो के बगल में शहीद का गलत लिखा नाम नजर नहीं आया और लानत है उन मेला आयोजकों पर जो आपकी लल्लो-चप्पो के चक्कर में शहीदों को ही भुला बैठे.