जंगलों की आग के विकराल रूप के लिए वन विभाग और प्रशासनिक लापरवाही जिम्मेदार

श्रीनगर (गढ़वाल) 03 मई. तीन वाम पार्टियों भाकपा,माकपा और भाकपा(माले) ने पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में लगी आग की घटनाओं पर गंभीर चिंता प्रकट करते हुए कहा है कि जंगलों की आग के ऐसे विकराल रूप धारण करने के लिए सीधे तौर पर वन विभाग और प्रशासनिक लापरवाही जिम्मेदार है. जंगलों में आग,वर्षा और बर्फ़बारी न होने के चलते जमीन में आद्रता की कमी होने के चलते तेजी से फ़ैल रही है. लेकिन वर्षा और बर्फ़बारी न होने की जानकारी तो वन विभाग और प्रशासनिक अमले को थी. इसके बावजूद ऐसी विकट परिस्थितियों से निपटने के लिए कोई तैयारी नहीं की गई. यहाँ तक की राज्यपाल द्वारा वनाग्नि और सूखे से निपटने के लिए पहली बैठक ही 28 अप्रैल को की गयी. जबकि वन में आग को फैले हुए डेढ़ महीना से अधिक बीत चुका था. राज्य में राष्ट्रपति शासन है और केंद्र सरकार, राज्यपाल के मार्फत उत्तराखंड का शासन चला रही है. लेकिन राज्य की इस विकराल स्थिति से निपटने के लिए केंद्र ने भरपूर लेटलतीफी बरती.

माकपा के राज्य सचिव राजेन्द्र सिंह नेगी , भाकपा के राज्य सचिव आनंद सिंह राणा तथा भाकपा (माले) के राज्य कमेटी सदस्य इन्द्रेश मैखुरी द्वारा जारी सँयुक्त प्रेस बयान मेँ कहा गया है कि केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कल लोकसभा में जो बयान दिया है, वह तथ्यहीन और भ्रामक हैं. राजनाथ सिंह ने आग के काबू में होने और किसी की मृत्यु न होने की बात कही. जबकि वनाग्नि से अब तक राज्य में लगभग 8 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और दर्जन भर से अधिक लोग घायल हो चुके हैं. इस मामले में लोकसभा और राज्यसभा में उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसदों का रवैया पूरी तरह संवेदनहीन है. भाजपा के सांसदों के साथ ही उत्तराखंड का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले कांग्रेस के सांसद-महेंद्र सिंह माहरा और राज बब्बर की जुबान भी इस मसले पर नहीं खुली. कल लोकसभा में शून्य काल में इस मसले को उठाने वाले अन्य राज्य के सांसद थे

बयान में कहा गया है कि जंगलों पर जनता का अधिकार पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है.  इसलिए वनों को बचाने में भी उनकी कोई भूमिका नहीं होती है. जबकि जिस वन विभाग का वनों पर अधिकारहै, वह पूरी तरह संवेदनहीन, लापरवाह और नाकारा है. पिछले डेढ़ दशक में ही कई बार वन अग्नि की गंभीर घटनाएँ हो चुकी हैं. लेकिन वन विभाग के पास आग से निपटने और उसे काबू करने के पर्याप्त इंतजाम तक नहीं हैं. वन विभाग आज भी बाबा आदम के जमाने के उपायों-झाफा (घास की झाड़ू), फायर लाइन और क्रॉस फायर (आग जिस दिशा से आ रही है, उसकी उलटी दिशा से आग लगाना) जैसे उपायों से काम चलाता है. आग लगने के कारण भले ही अलग-अलग हों, लेकिन उसके विकराल रूप धारण करने के लिए पूरी तरह वन विभाग की काहिली, निक्कमापन और संवेदनहीन रवैया जिम्मेदार है. हम मांग करते हैं कि पहाड़ की बहुमूल्य वन संपदा के नष्ट होने और उसकी सुरक्षा न कर पाने के लिए लोगों के जान माल को संकट में फंसने देने के लिए वन विभाग पर जिम्मेदारी आयद करते हुए, उसके उच्च अधिकारीयों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जाए.

प्रेस बयान मेँ यह मांग की गयी है कि इस बात की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए कि कहीं इतने बड़े पैमाने पर जंगलों में आग लगने की पीछे वन माफिया के हित तो नहीं हैं,  यह सुनिश्चित करने की मांग भी की गयी है कि जनता के संकट का माफिया ताकतें फायदा न उठा सकें. भविष्य में ऐसी गंभीर घटनाएँ न हों, इसके लिए बचाव के समुचित उपाय किये जाएँ तथा जंगलों पर जनता का अधिकार कायम किया जाए.

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