संविधान की दुहाई दे कर सत्ता मे लौटे हरीश रावत, मंत्रिमंडल जैसे संवैधानिक निकाय का उपयोग, असंवैधानिक कृत्यों के लिए कर रहे हैं। जिस तरह मंत्रिमंडल ने स्टिंग ऑपरेशन की सी.बी.आई. जांच की अधिसूचना रद्द की है, वह अनैतिक, गैर कानूनी और संविधान विरोधी कार्यवाही है। स्टिंग की जांच राज्य सरकार द्वारा करवाने की घोषणा हास्यास्पद है। मुख्यमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति की जांच मुख्यमंत्री की अधीन आने वाली कोई जांच एजेंसी कैसे कर सकती है? जितनी त्वरित गति स्टिंग की जांच एजेंसी बदलवाने मे दिखाई गयी है, उससे अनैतिक और गैरकानूनी कृत्य मे हरीश रावत की संलिप्तता का संदेह पुख्ता होता है
हरीश रावत की सरकार पूरी तरह माफिया हितों के लिए काम कर रही है। स्टोन क्रशरों की स्वीकृति की नियमावली पूरी तरह से खनन माफिया के हितों के अनुरूप बना दी गयी है। मुख्यमंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा सरकारी खजाने मे आने वाले राजस्व का नुकसान करने वाली नियमवाली को पारित करवाना हरीश रावत की माफियापरस्ती का स्पष्ट उदाहरण है।
गौचर मे गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी भाषाओं के विकास संस्थान की घोषणा, एक और झुनझुना है, जो इस क्षेत्र को थमाया गया है। इससे पूर्व मे भी गौचर मे इंजिनियरिंग कॉलेज, वेटरीनरी कॉलेज आदि घोषणाएँ कांग्रेस सरकार के काल मे ही की गयी थी, लेकिन इनमे से कोई घोषणा धरातल पर नहीं उतरी।
हरीश रावत सरकार के इस जनविरोधी, माफियापरस्त, संविधान विरोधी रुख की, भाकपा (माले) तीव्र भर्त्सना करती है और स्टिंग की सी.बी.आई. जांच निरस्त करने की अधिसूचना वापस लेने और खनन माफियाओं के हक मे लिए गए निर्णयों को तत्काल रद्द करने की मांग करती है।