उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत पहाड़ में तमाम मेले-ठेलों में खेती और उसके महत्व पर आये दिन भाषण देते रहते हैं. कई बार इन भाषणों से ऐसा भान होता है जैसे कि राज्य सरकार ने तो पहाड़ में खेती को प्रोत्साहित करने में कोई कसर न उठा रखी हो, लेकिन लोग ही इस कदर निक्कमे हो चले हैं कि पहाड़ में खेती की दुर्दशा है!
लेकिन पहाड़ में खेती के महत्व पर मुख्यमंत्री के इन उपदेशात्मक भाषणों के इतर राज्य सरकार की कार्यप्रणाली देखें तो साफ़ दिखता है हरीश रावत और उनकी सरकार का मंतव्य खेती का प्रोत्साहन नहीं, जमीन बेचने का इंतजाम करना है. अभी कुछ महीनों पूर्व यह घोषणा सरकार ने की कि जो पहाड़ में निजी शिक्षण संस्थान खोलेगा, उसे लैंड यूज नहीं बदलवाना पड़ेगा, यह स्वतः बदल जाएगा. अब 10 फरवरी को हुई उत्तराखंड कैबिनेट की बैठक का यह निर्णय समाचार पत्रों में घोषित हुआ है कि कृषि भूमि पर अस्पताल, शिक्षण संस्थान, निजी मेडिकल कॉलेज, शॉपिंग माल आदि बनाने पर लैंड यूज खुद ही 45 दिन के अन्दर बदल जाएगा. यह समझ से परे है कि जो मुख्यमंत्री मेले-ठेलों में कृषि और उसकी जरुरत पर उपदेश देता है, वही मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल के साथ बैठ कर उसी कृषि भूमि को हथियाना, सुगम करने के लिए नियम बनाता है! वो भी तब, जबकि सन 1958 में अंतिम भूमि बंदोबस्त के समय ही पहाड़ में 9 प्रतिशत कृषि भूमि बची थी. इन 57 वर्षों में यह कितनी बची होगी, इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है.
मुख्यमंत्री का यह ‘भूमि लुटाओ अभियान’ इतने पर ही नहीं रुका है. बल्कि उन्होंने और उनके मंत्रिमंडल ने यह भी ऐलान कर दिया है कि नगर निगम, नगर पालिकाओं, नगर पंचायत, विकास प्राधिकरणों और औद्योगिक प्राधिकरणों के क्षेत्र में आने वाली जमीन पर कन्वर्जन की आवश्यकता नहीं होगी. बीते कुछ महीनों में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तमाम छोटे कस्बों, यहाँ तक कि छोटे बाजारों वाले स्थानों को भी ताबड़तोड़ नगर पंचायत घोषित किया है. इस बारे में उत्तराखंड के शहरी विकास निदेशालय के एक अफसर का कहना था मुख्यमंत्री अगले बीस वर्ष की सोच के साथ नए उभरने वाले शहरों को नजर में रख कर ये नगर पंचायतों की घोषणा कर रहे हैं. लेकिन अब स्वतः लैंड यूज कन्वर्जन वाले इस नियम को देख कर तो लगता है कि नगर पंचायतों की यह ताबड़तोड़ घोषणा मुख्यमंत्री अगले 20 वर्ष की सोच के साथ नहीं बल्कि छोटी-छोटी जगहों पर भी जो थोड़ी बहुत कृषि भूमि बची है, उसे तत्काल ठिकाने लगाने के इरादे से कर रहे हैं. राजनीति को प्रभावित करने वाले भू-भक्षियों के प्रभाव का अंदेशा यदि इस निर्णय से हो रहा है तो यह अकारण तो नहीं है. आखिर अस्पताल, शिक्षण संस्थान, निजी मेडिकल कॉलेज, शॉपिंग माल बनाने के लिए कृषि भूमि की बलि लेना इतना जरुरी क्यों है मुख्यमंत्री जी? ये सब बंजर जमीन पर भी बन सकते हैं. कृषि के महत्व का उपदेश और कृषि भूमि की बलि का नीतिगत इंतजाम एक साथ कैसे चल सकता है हरीश रावत जी?