नई दिल्ली, 29 फरवरी 2016.
आज अरुण जेटली द्वारा पेश किया गया बजट आम जनता की जरूरतों और भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को हल करने से बहुत दूर है। बढ़ती आर्थिक कठिनाइयों के लिए सारा दोष ‘एक कठिन वैश्विक माहौल, विपरीत मौसम और राजनीतिक वातावरण’ पर डाल दिया गया है।
इस बजट में खाद्य सुरक्षा कानून का जिक्र ही नहीं है जो कि अभी तक पूरी तरह से लागू ही नहीं हो सका है। जन वितरण प्रणाली के बारे में केवल इतना भर ही कहा गया है कि 3 लाख उचित मूल्य दुकानों का आॅटोमेशन किया जायेगा। सिंचाई पर जोर देने की बात इसमें है, परन्तु किसानों के पास पंूजी का अभाव और फसल का उपयुक्त मूल्य न मिल पाने की समस्या का समाधान नहीं किया गया, जोकि गहराते कृषि संकट की प्रमुख वजह है जिसके चलते हर महीने हजारों किसान आत्महत्या की ओर बढ़ रहे हैं।
उच्च शिक्षा के लिए एक फण्डिंग एजेन्सी बना मात्र 1000 करोड़ की काम चलाऊ राशि आवंटित करने से उच्च शिक्षा में पहले से ही हाशिये पर पहंुच चुके मध्यम और गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों की समस्यायें और बढ़ेंगीं। स्वास्थ्य क्षेत्र मंे कोई पहल नहीं ली गई है, लगता है सरकार ने ठान लिया है कि गरीब मरीजों की जान को लगातार बढ़ रहे पीपीपी मोड वाली व्यवस्था के हवाले ही छोड़ देना है।
करीब 75 लाख परिवारों ने एलपीजी सब्सिडी स्वेच्छा से छोड़ी है, लेकिन अति धनिक वर्ग खुलेआम टैक्स कानूनों का उल्लंघन कर रहा है और बैंकों द्वारा दिया गया कर्ज पचा चुका है जिनके विरुद्ध कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। मध्यम वर्ग को तो कोई राहत नहीं दी गयी, उल्टे धनिक वर्गों को और ज्यादा टैक्स माफी व छूटें देकर खुश करने की कोशिश इस बजट में भी हुई है। इस वर्ष के बजट में भी टैक्सेशन नीति के मौजूदा प्रतिगामी चरित्र को वस्तुओं व सेवाओं पर सेस एवं सरचार्ज लगा कर और बढ़ाया गया है, जबकि काॅरपोरेट टैक्स दरें नहीं बढ़ाई गयी हैं, केवल 3 प्रतिशत सरचार्ज सालाना एक करोड़ से ज्यादा की व्याक्तिगत आय वालों पर लगाया गया है।
सड़क निर्माण क्षेत्र में 2014 में 28,679 करोड़ व 2015-16 में 69,422 करोड़ दिये गये थे, जो अब एकदम से 1,03,386 करोड़ कर दिया गया है- यह ऊंची छलांग और कुछ नहीं इस क्षेत्र के अधूरे प्रोजेक्टों को सरकार पूरा करेगी, जिनमें पीपीपी के जरिए निजी काॅरपोरेट काफी मलाई खा कर किनारे हो चुके हैं!
भारतीय बैंकिग क्षेत्र बिना चुकाये गये विशाल काॅरपोरेट कर्जेां के बोझ से दबा हुआ है, केवल 25000 करोड़ का पंूजी निवेश ऐसे में बैंकों को कोई खास राहत नहीं दे पायेगा। आईडीबीआई में सरकार की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत से घटा कर 51 प्रतिशत से कम करने का निर्णय बैंकिंग सेक्टर के इस संकट का फायदा उठाकर उनके निजीकरण की ओर ले जाने वाला एक कदम है।
भाकपा(माले) सभी से अपील करती है कि खाद्य सुरक्षा कानून के तत्काल व सम्पूर्ण रूप में लागू कराने, मनरेगा का और विस्तार करने, किसानों के लिए और तरह-तरह के प्रोजेक्टों व छोटे उद्यमों आदि में अपनी आजीविका कर रहे लोगों के लिए ज्यादा मात्रा में सस्ते कर्ज की व्यवस्था, और स्वास्थ्य एवं शिक्षा में ज्यादा व उपयुक्त राशि के आवंटन की मांगांे के साथ सरकार पर दबाव बनायें।
दीपंकर भट्टाचार्य)
महासचिव
भाकपा(माले)