दोस्तो!
चंपारण के मजदूर-किसान आंदोलन के एक बड़े प्रतीक कामरेड दाउद कुरैशी अब नहीं रहे. 24 फरवरी 2015 को चनपटिया में अपने पैतृक आवास पर ब्रेन हैमरेज के कारण उनकी मौत हो गयी. वे 58 वर्ष के थे. उनकी जिंदगी का बड़ा हिस्सा जनता के संघर्षों में ही गुजरा.
वे 1970 के दशक में चंपारण में चल रहे भाकपा -माले के आंदोलन से जुड़े और डाॅक्टरी की अच्छी-खासी प्रैक्टिस को छोड़ कर सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई में अपना जीवन अर्पित कर दिया. उन्होंने चनपटिया में मजदूर आंदोलन का नेतृत्व किया और उस क्रम में चनपटिया स्थित भाकपा -माले कार्यालय निर्माण में अपनी बड़ी भूमिका निभायी. बाद में देहाती क्षेत्रों में शाही परिवार के जुल्म के खिलाफ चली जनता की लड़ाइयों का नेतृत्व किया.फिर भाकपा-माले के जिला नेता के बतौर लौरिया के लक्ष्नौता, सिकटा, मैनाटांड़ आदि क्षेत्रों में, 1990 के दशक और इस सदी के प्रथम दशक में चले भूमि आंदोलनों का नेतृत्व किया. पूर्वी चंपारण के छौड़ादानों, घोड़ासहन क्षेत्र में आम जनता पर चल रहे पुलिस जुल्म के खिलाफ चले प्रतिरोध् आंदोलनों में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभायी. गरीबों, मजदूरों-किसानों की न्यायपूर्ण लड़ाइयों में नेतृत्वकारी भूमिका के चलते लालू राज में उनपर दर्जनों झूठे मुकदमे थोप दिए गए, जिसमें कई वर्षों तक वे जेल में रहे. नीतिश राज में भी उनपर से मुकदमे वापस नहीं हुए. घोर पारिवारिक आर्थिक तंगी और राज दमन के बावजदू वे कभी पीछे नहीं हटे. सांप्रदायिकता और दरबारी राजनीति के खिलाफ वे हमेशा गरीबों-मजदूरों-किसानों की एकता पर आधरित आंदोलनों की अगुवाई करते रहे.
भाकपा-माले उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करती है और उनके परिवार जनों, दोस्तों के दुख में शरीक है. पश्चिम चंपारण में चले कम्युनिस्ट आंदोलन में, खासकर भूमि आंदोलनों में उनकी निभायी गयी क्रांतिकारी भूमिका लोगों को हमेशा याद रहेगी. वे अपनी हाजिर जवाबी के लिए भी लोगों की यादों में बने रहेंगे. वे सामाजिक परिवर्तन की संघर्षशील शक्तियों को प्रेरणा देते रहेंगे. भाकपा-माले ने 24 फरवरी से 3 मार्च तक शोक सभा सप्ताह गांव-गांव में मनाने और 3 मार्च को चनपटिया में श्रद्धांजलि सभा का कार्यक्रम घोषित किया है. आइए, उक्त कार्यक्रमों में भाग लेकर उन्हें श्रद्धांजलि दें और उनकी प्रेरणास्पद यादों के जरिए सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई को आगे बढ़ाने का संकल्प लें!