25 मार्च 2015
माले राज्य सचिव कुणाल ने उत्तरप्रदेश के मेरठ के हाशिमपुरा कांड के सभी आरोपियों को दिल्ली की तीस हजारी अदालत द्वारा बरी किये जाने की घटना पर गहरा रोष जाहिर किया है. उन्होंने कहा कि 1987 में अल्पसंख्यक समुदाय के 42 लोगों की निर्ममता से हत्या पुलिस के लोगों ने ही कर दी थी. 27 साल के लंबे इंतजार के बाद उन्हें न्याय के बदले उनके न्याय का संहार रचाया गया.
उन्होंने कहा कि हाशिमपुरा की कहानी बिहार के बाथे-बथानी व मियांपुर की ही कहानी लगती है. बिहार में रणवीर सेना द्वारा रचाए गए गरीबों के जनसंहारों की इन घटनाओं में अदालत ने साक्ष्य का अभाव बताकर दोषियों को रिहा कर दिया. एक-एक कर ऐसे 7 मामलों के अभियुक्त बरी किए जा चुके हैं. इस तरह उनके न्याय का एक बार फिर संहार रचाया गया.
उन्होंने कहा कि दलितों-अल्पसंख्यकों के प्रति हमारी व्यवस्था घोर पूर्वाग्रह से ग्रसित है. यहां तक कि न्याय व्यवस्था भी समाज के कमजोर वर्गों के पूरी तरह खिलाफ है. एक ओर जहां, अरवल के लोकप्रिय कामरेड शाह चांद सहित 14 लोगों को इसी न्याय व्यवस्था ने झूठे मुकदमे में टाडा लगाकर आजीवन कारावास की सजा सुना दी, वहीं दूसरी ओर जहां मामला गरीबों-दलितों-अल्पसंख्यकों के न्याय का था, वहां न्यायालय साक्ष्य व प्रमाण का बहाना बनाकर दोषियों को सजामुक्त करने में लगी है. इससे भी आगे, गरीबों-दलितों-अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने की बजाए कोर्ट चंद मुआवजे की राशि घोषित करके जले पर नमक छिड़क रही है.
उन्होंने कहा कि मेरठ के हाशिमपुर में जिस वक्त यह जघन्य घटना घटी थी, उस समय उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी. इस बीच यूपी में भाजपा, सपा, बसपा की सरकार बनते रही है. भाजपा का तो एजेंडा साफ तौर पर सांप्रदायिक विभाजन का है. लेकिन जो पार्टियां धर्मनिरपेक्षता का दावा करती है, उनके शासन में ही हाशिमपुर केस की सुनवाई हुई और इन सभी ताकतों ने मिलकर मुकदमे को इतना हलका बना दिया, जांच की प्रक्रिया को ढीला कर दिया, कि उसकी आड़ में कोर्ट ने सभी दोषियों को बरी कर दिया. यह अत्यंत शर्मनाक है.
उन्होंने आगे कहा कि इन सभी मामलों में हमारी मांग है कि सुप्रीम कोर्ट के प्रत्यक्ष निर्देशन में एसआईटी का गठन करके इनकी पुनः जांच करायी जानी चाहिए, ताकि दोषियों-अपराधियों को सजा और पीडि़तों को न्याय की गारंटी हो सके.
उन्होंने आगे कहा कि भाकपा-माले हाशिपुरा के पीडि़तों के न्याय को लेकर पूरी तरह उनके साथ है तथा आगामी 27 मार्च को इस सवाल पर राज्यव्यापी प्रतिरोध दिवस आयोजित किया जाएगा.