16वीं विधान सभा के पहले बजट सत्र में माले विधायकों ने अपनी पहलकदमियों से सिद्ध कर दिया कि असली विपक्ष भाकपा (माले) ही है जिसके तीन विधायक दोनों गठबंधनों की नीतियों के खिलाफ चुनावी संघर्ष में जीत हासिल कर विधान सभा पहुंचे हैं। माले विधायकों ने सम्पूर्ण बिहार के गरीबों, किसानों व तमाम संघर्षशील तबकों के मुद्दों को उठाकर सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। हमारे एक विधायक कामरेड सत्यदेव राम सामंती साजिश के चलते सीवान जेल में बंद थे। उन्हें विधान सभा में भागीदारी कराने हेतु सिवान से पटना बेउर जेल लाया गया। तीनों विधायकों ने विधायक दल नेता महबूब आलम के नेतृत्व में 25 फरवरी को सत्र शुरू होने के दिन राज्यपाल के अभिभाषण के पूर्व बिहार विधान सभा के पोर्टिको में रोहित वेमुला को न्याय दिलाने एवं जेएनयू के छात्रों पर लगे देशद्रोह का मुकदमा वापस लेने के सवाल पर पोस्टर प्रदर्शन किया।
अगले दिन शून्यकाल के दौरान का. महबूब आलम ने विधान सभा से रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या और भाजपा व संघ परिवार द्वारा देश में अंधराष्ट्रवाद और नफरत का माहौल पैदा करने की कोशिशों के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाने की मांग की। विधान सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जेएनयू पर निशाना साधकर केंद्र सरकार अभिव्यक्ति की आजादी, लोकतंत्र व संविधान पर हमला कर रही है। यह देश के लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है. लेकिन भाजपा व संघ परिवार से लड़ने का दिखावा करने वाली नीतीश कुमार की सरकार ने माले के इस प्रस्ताव पर विचार करना मुनासिब नहीं समझा। इसके अलावा महबूब आलम ने दरौली विधयक सत्यदेव राम एवं इनौस के अध्यक्ष अमरजीत कुशवाहा व माले के युवा नेता कामरेड मनोज मंजिल सहित अन्य आंदोलनकारियों की रिहाई की मांग उठाई और सरकार पर आरोप लगाया कि वह इस मामले में दोहरा रवैया अपना रही है। लालू प्रसाद सहित राजद के आन्दोलनकारियों पर से मुकदमे वापस ले लिए गये, जबकि माले नताओं पर मुकदमा चलाया जा रहा है। भोजपुर में किसान नेता राजेन्द्र महतो और सिवान के पार्टी नेता संजय चैरसिया के साथ-साथ बेगूसराय में पर्चे की जमीन दखल आन्दोलन में नेतृत्वकारी साथी रामप्रवेश राम व महेश राम की निर्मम हत्या के प्रश्न को प्रमुखता से उठाया गया।
राज्यपाल के अभिभाषण पर हुए वाद-विवाद में विधायक सुदामा प्रसाद ने कहा कि सरकार द्वारा पेश 2016-17 के बजट में एक बार फिर आंकड़ों की बाजीगरी दिख रही है। पिछले 10 वर्षों में 10 प्रतिशत से अधिक विकास दर की बात हो रही है। यदि विकास दर इतनी अधिक है तो पिछले 10 वर्षों में बिहार में कल-कारखाने क्यों नहीं खुले ? पुराने उद्योग लगभग बंद पड़े हैं। चीनी मिलों को खोलने की बजाय उनकी जमीनों को औने-पौने भाव में बेचा जा रहा है और जो उद्योग लगे भी वे शराब व दुनिया के अधिकांश देशों में प्रतिबंधित एस्बेसटस की खतरनाक व जानलेवा फैक्टरियां हैं। सरकार का यह विकास माॅडल रोजगार-विहीन विकास माॅडल है।
उन्होंने कहा कि सरकार आज दूसरे कृषि रोड मैप की बात कर रही है। लेकिन पहले कृषि रोड मैप की भारी-भरकम योजना का क्या हुआ, इस पर वह चुप है. इसी तरह बिहार के आमूल बदलाव की कुंजी भूमि सुधार पर सरकार खामोश क्यों है? बिहार की खेती लगातार घाटे में जा रही है। किसान त्राहि-त्राहि कर रहे हैं, लेकिन सरकार झूठे आकड़ों के जरिए विकास का दावा ठोक रही है। आज लगभग पूरा बिहार सूखे की चपेट में है और सरकार हाथ पर हाथ रख कर बैठी है। किसी तरह से किसानों ने जो धान उपजाए उसे क्यों नहीं खरीदा जा रहा है? यहां तक कि कई जिलों में विगत वर्ष खरीदे गये धान की कीमत का बकाया आज तक नहीं मिला है। लगातार घाटे से कर्ज में डूबे किसान न सिर्फ खेती छोड़ने पर मजबूर हैं, बल्कि वे आत्महत्या तक के लिए विवश हो रहे हंै। बिहार में किसानों की आत्महत्या एक नयी प्रवृत्ति के रूप में सामने आई है। बिहार की खेती का भार अपने कंधें पर उठाये बटाईदार किसानों को सरकार अभी तक किसान मानने के लिए तैयार नहीं है। इस विषय पर तमाम सत्ताधारी पार्टियों के बीच सहमति है। सरकार बटाईदार किसानों को कोई कानूनी अधिकार नहीं दे रही है। यहां तक कि उन्हें किसान होने का पहचान पत्र तक नहीं दिया जा रहा है। यह कैसा ‘न्याय के साथ विकास’ किया जा रहा है?
सरकार श्री-विधि से खेती को प्रोत्साहन देने की बात कर रही है, लेकिन जब वैशाली में किसानों ने श्री-विधि से धान की खेती की तो वहां फसलें तो लहलहाईं, लेकिन उसमें एक भी बाली नहीं लगी। वैशाली जिले के 16 प्रखण्डों के कृषि पदाधिकारियों एवं जिला कृषि पदाधिकारी ने राज्य सरकार को इस संबंध में पत्र लिखा. लेकिन आज तक उन पीड़ित किसानों को कोई मुआवजा नहीं मिला, और न ही नकली बीज देने वाली कम्पनियों पर सरकार ने कोई कार्रवाई की। पूर्वी बिहार के भागलपुर, कटिहार व पूर्णिया जिले में मकई की खेती केे साथ भी ऐसा ही हुआ है।
उन्होंने आगे कहा कि सिंचाई के मामले में सोन नहर सहित सभी पुरानी नहर व्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुकी हैं। 90 प्रतिशत से अधिक नलकूप बंद पड़े हैं और सरकार सिंचाई के साधनों में विकास का दावा कर रही है ! खेती के क्षेत्र में बिजली तो नदारद ही है।
जन वितरण प्रणाली का अनाज काला बाजार में खुलेआम बेचा जा रहा हैं। 6-6 माह से गरीबों को राशन नहीं मिल रहा है, उल्टे सरकार अनाज के बदले पैसा योजना को लागू कर इस योजना को ही समाप्त कर देना चाहती है। सरकार दावा कर रही है कि 2 लाख 38 हजार परिवारोें के बीच 7120.40 एकड़ आवास व खेती की जमीन वितरित की गयी है। यह तो उंट के मुंह में जीरा भी नहीं है। 21 लाख 85 हजार एकड़ सीलिंग से फाजिल व बिहार सरकार की जमीन रहते हुए भी बिहार के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 60 प्रतिशत गरीबों के सर पर छत नहीं है। कई ऐसे उदाहरण हैं जहां एक-एक कमरें में 15-17 आदमी रहते हैं। जब रहने के लिए जगह नहीं है, तो घर में शौचालय कहां से बनेगा? सरकार गरीबों के लिए आवास की जमीन तो मुहैया नहीं ही करा रही है, उल्टे आज जिस जमीन पर गरीब बसे हैं और जिस पर उन्हें पर्चा भी हासिल है, वहां से उनको उजाड़ा जा रहा है। ऐसे 100 से अधिक उदाहरणों की सूची भूमि सुधार विभाग को हमारी पार्टी की ओर से दिया गया है.
चुनाव के पहले नीतीश कुमार ने बिहार के युवाओं से वादा किया था कि प्रत्येक नौजवान को बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा, लेकिन अब सरकार कह रही है कि केवल 20-25 वर्ष तक के युवाओं को, जो रोजगार की तलाश में हैं, उन्हें 1000 रुपये का मासिक सहयोग प्रदान किया जाएगा. जबकि, यह उम्र पढ़ने की होती है और इस तरह जब वह सही अर्थों में बेरोजगार होगा, तो सरकार उसे कोई सहायता प्रदान नहीं करेगी.
सरकार महिलाओं को आरक्षण देने की बात तो कह रही है, लेकिन रोजगार के अवसर निरंतर घटते जा रहे हैं. सरकार का दावा है कि वह शिक्षा क्षेत्र पर सर्वाधिक जोर दे रही है, लेकिन इसकी आड़ में शिक्षण संस्थानों को निजी क्षेत्र के हवाले करने की कोशिश की जा रही है.
बजट के पहले ही सरकार ने ‘वैट’ में वृद्धि करके आम लोगों पर महंगाई की मार बढ़ा दी है. स्वास्थ्य विभाग के लिए 8234.70 करोड़ रुपया आवंटित किया गया है. आखिर, इस पैसे का क्या हो रहा है? डाॅक्टर व दवाइयां अस्पताल से गायब हैं. 28 फरवरी 2016 को भोजपुर के पसौर में एक महादलित बच्ची के साथ बलात्कार हुआ. बलात्कार की शिकार बच्ची आरा सदर अस्पताल में रात 8 बजे से 29 फरवरी की दोपहर तक पड़ी रही. उसकी मेडिकल जांच नहीं हुई. ड्यूटी पर तैनात डाॅक्टर ने उसे पटना रेफर किया. असमर्थता जाहिर करने पर लड़की के पिता से 500 रुपये लेकर एंटिबाॅयटिक बाहर से खरीद कर मंगवाया गया. ऐसी स्थिति में दलित परिवार अपना इलाज कैसे करवा सकता है?
का. सुदामा प्रसाद ने कहा कि कुल मिलाकर, आपके द्वारा पेश इस बजट में जनादेश की भावनाएं कहीं से परिलक्षित नहीं होती हैं. यह सरकार भी उन्हीं नीतियों पर चल रही है जिसपर काॅरपोरेट-परस्त व किसान विरोधी केंद्र की भाजपा सरकार चल रही है.
भाकपा-माले विधायकों ने लगभग सभी विभागों के विनियोग विधेयक पर बहस में हिस्सा लिया. इसके साथ ही, तारांकित व अल्पसूचित प्रश्नों, शून्यकाल, निवेदन, ध्यानाकर्षण, कार्यस्थगन आदि के माध्यम से संपूर्ण बिहार के जन-हित से जुड़े 205 मुद्दे उठाए गए. इनमें व्यक्तिगत प्रश्नों के अलावा आशा कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी सेविकाओं, रसोइया महिलाओं, पंचायत शिक्षकों, मानदेय आधारित अन्य कर्मियों, सिंचाई विभाग से जुड़े कई तरह के कर्मियों व निर्माण मजदूरों से जुड़े प्रश्न, पूर्णिया व पश्चिम चंपारण में बटाईदारी से जुड़े प्रश्न, पेय जल, सड़कों, पुल-पुलियों के निर्माण, स्कूल भवन, स्वास्थ्य उप-केंद्र निर्माण आदि से जुड़े प्रश्न प्रमुखता से उठाए गए.
13 मार्च को नागरिक मंच की पहल पर मुजफ्फरपुर में आयोजित ‘मैं जेएनयू बोल रहा हूं’ कार्यक्रम पर संघी गुंडों द्वारा हमले व जिला प्रशासन की नकारात्मक भूमिका के खिलाफ 14 मार्च को माले विधायकों ने सरकार पर जोरदार हमला किया. स्थानीय अखबारों में इसकी काफी चर्चा हुई. माले विधयकों ने प्रशासन के रवैये की सख्त आलोचना करते हुए साजिशकर्ता भाजपा नेता की गिरफ्तारी व नगर आयुक्त को हटाने की मांग की.
बेगूसराय में 21 मार्च को भाकपा-माले नेताओं की हत्या के प्रतिवाद में इन विधायकों ने 28 मार्च को होली के बाद जब विधन सभा सत्र प्रारंभ हुआ, तो पुनः कार्य स्थगन लाकर सदन में चर्चा की मांग की और सरकार द्वारा नहीं मानने पर ‘वेल’ में प्रदर्शन तथा बाद में ‘बहिर्गमन’ किया.