सामाजिक उत्पीड़न और सांप्रदायिक उन्माद से मुक्ति की लड़ाई बिहार से गुजरात तक है जारी: माले.

प्रेस हैंड आउट
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19 सितंबर को सासाराम में आयोजित ‘सामाजिक परिवर्तन सम्मेलन’ में भाग लेंगे गुजरात दलित आंदोलन के नेता जिग्नेश मेवाणी.

बिहार में 4 से 15 सितंबर तक सामाजिक उत्पीड़न व सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ सामाजिक परिवर्तन यात्रा में भाग लेंगे छात्र-नौजवान-

काॅरपोरेट लूट, सांप्रदायिक हिंसा, राज्य दमन और दलितों पर अत्याचार पर आधारित है भाजपा का गुजरात माॅडल.

5 एकड़ की भूमि की मांग पर गुजरात में 15 सितंबर को रेले रोको आंदोलन के समर्थन में बिहार में भी होगा चक्का जाम.

पटना 21 अगस्त 2016

भाजपा के ‘गुजरात माॅडल’ की सच्चाई पूरी तरह बेपर्द हो गयी है. भाजपा जिसे ‘विकास’ का बेहतरीन माॅडल बता रही थी, वहां दलित उत्पीड़न के खिलाफ दलितों के ऐतिहासिक उभार और उसके बाद दलित-अल्पसंख्यकों की मजबूत एकता पूरे देश को एक नया संदेश दे रही है. भाजपा के इस माॅडल में जहां एक तरफ दलितों पर अमानवीय अत्याचार है, वहीं दूसरी ओर काॅरपोरट घरानों को लूट की पूरी छूटें हासिल हैं. अल्पसंख्याकें के खिलाफ गुजरात को सांप्रदायिक उन्माद व राज्य दमन की लेबोरट्री बना देने की नरेन्द्र मोदी और भाजपा के कारनामांे से तो पूरी दुनिया परिचित है.

अहमदाबाद से ऊना तक (5 अगस्त से लेकर 15 अगस्त) आयोजित दलित अस्मिता यात्रा में बिहार से भाकपा-माले और इंकलाबी नौजवान सभा के नेतागण शामिल हुए. तरारी से माले विधायक सुदामा प्रसाद और दरौली से पूर्व विधायक अमरनाथ यादव इस यात्रा के हिस्सा बने. वहीं, इंकलाबी नौजवान सभा के राज्य अध्यक्ष मनोज मंजिल, रविन्द्र यादव, जितेन्द्र पासवान, सुजीत कुशवाहा आदि नेता पूरी यात्रा के हिस्सा बने और 15 अगस्त को ऊना में आयोजित सभा में हिस्सा लिया. 15 अगस्त की सभा में भाकपा-माले पोलित ब्यूरो सदस्य कविता कृष्णन भी शामिल हुईं. यात्रा के दौरान बिहार से गये नेेताओं ने जगह-जगह सभाओं को संबोधित किया.
भाकपा-माले ने बिहार में लंबे समय से सामाजिक उत्पीड़न के खिलाफ सामाजिक परिवर्तन के लिए दलितों-गरीबों की चल रही लड़ाई का प्रतिनिधित्व किया है. नौजवानों की टीम ने यात्रा के दौरान गुजरात के दलितों के साथ संवाद स्थापित किया और कहा कि आज बिहार की लड़ाई गुजरात तक फैल गयी है. यह बेहद स्वागतयोग्य है. दिल्ली में बैठी मोदी सरकार और विभिन्न राज्यों में कायम जनविरोधी, दलित विरोधी, छात्र-नौजवान विरोधी, मजदूर-किसान विरोधी सरकारों के खिलाफ छात्र-नौजवानों, मजदूर-किसानों, दलित-अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बुद्धिजीवियों का व्यापक मोर्चा बनने लगा है. आने वाले दिनों में दलित मुक्ति का प्रश्न और व्यापक व राष्ट्रीय स्वरूप ग्रहण करेगा.
गुजरात की दलित अस्मिता यात्रा के संदेश को अब हम बिहार के ग्रामीण इलाकों में ले जायेंगे. आगामी 4 से 15 सितंबर तक बिहार में भाकपा-माले ने सामाजिक परिवर्तन यात्रा संचालित करने का निर्णय लिया है. 15 सितंबर को गुजरात में जारी दलित आंदोलन ने रेल रोको कार्यक्रम का आयोजन किया है. इसके समर्थन में हम पूरे बिहार में कार्यक्रम आयोजित करेंगे. 19 सितंबर को भाकपा-माले के 10 वें राज्य सम्मेलन के अवसर पर सासाराम में सामाजिक परिवर्तन सम्मेलन का आयोजन किया गया है, जिसे गुजरात दलित आंदोलन के नेता जिग्नेश मेवाणी भी संबोधित करेंगे.

गुजरात में दलितों के ऐतिहासिक आंदोलन ने आरक्षण में सिमटे दलित प्रश्न को एक बार फिर से व्यापक आयाम प्रदान किया है. जिस तरह से साठ के दशक में नक्सलबाड़ी के निम्न जाति किसानों व आदिवासियों की लड़ाई का फैलाव पूरे देश में हुआ और बिहार के भोजपुर जिले के एकवारी में नक्सबाड़ी की चिंगारी पहुंची और सामाजिक अत्याचार के खिलाफ लोकतंत्र के लिए चल रही लड़ाई से वह एकाकार हुई, उसी तरह आज बिहार व गुजरात की भी लड़ाई एकाकार हो रही है. सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई का संदेश लेकर बिहार के नौजवान गुजरात गए थे. गुजरात में सदियों से जारी सामाजिक गुलामी की प्रथाओं से मुक्ति व भूमि का सवाल प्रमुखता से उठ खड़ा हुआ है.

गुजरात के दलित उभार ने कुछ मांगों को प्रमुखता से उठाया है. सरकार को अमानीवय परंपराओं, जैसे मैला ढोने, मरे पशुओं का खाल खींचने आदि जैसे कार्यों के लिए सरकारी व्यवस्था करनी होगी. यह बेहद शर्मनाक है कि आज भी ये सारे अमानवीय कार्य दलित समाज के हिस्से हैं. गुजरात में दलितों की आबादी कम है, लेकिन दलित उत्पीड़न की घटनायें कहीं अधिक हैं. इन उत्पीड़न की घटनाओं में दोषियों को सजा देने का अनुपात यदि शेष भारत में 22 प्रतिशत है, तो गुजरात में महज 2.9 प्रतिशत है. वहां अंबानी-अडानी को जहां जमीन लूटने की पूरी छूट है, महज 1 लाख 63 हजार 808 एकड़ जमीन पर गरीबों-दलितों को पर्चा मिला है. पर्चा मिल भी गया है, तो उस पर उनका कब्जा नहीं है. 50 हजार एकड़ भूदान की जमीन है, जिस पर भी उनका कब्जा नहीं है. दलित उभार की प्रमुख मांगों में जमीन का वितरण, वनाधिकार कानून को लागू करना, हर जिला में दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर तत्काल कार्रवाई के लिए न्यायालय की व्यवस्था, सफाईकर्मियों के लिए सम्मानजनक रोजगार की व्यवस्था आदि शामिल हैं.

राजाराम सिंह – केंद्रीय कमिटी सदस्य भाकपा-माले

मनोज मंजिल – राज्य अध्यक्ष, इनौस

रविन्द्र यादव – इनौस

जितेन्द्र पासवान – इनौस

सुजीत कुशवाहा – इनौस

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