New Delhi, 8 Nov. 2016.
Stop Intimidation And Harassment Of Human Rights Activists, Journalists And Scholars Exposing The Reality Of Bastar
CPI(ML) strongly condemns the FIR filed by the Chhattisgarh government against Delhi University professor Nandini Sundar, JNU professor Archana Prasad, CPI(M) Chhattisgarh state secretary Sanjay Parate, Vineet Tiwari from Delhi’s Joshi Adhikar Sansthan and six others. This FIR, ridiculously charging Prof. Sundar and others of the murder of an adivasi villager in Bastar, is clearly an attempt to intimidate all democratic voices speaking out against the ongoing state repression in Chhattisgarh. Apart from murder, they have been charged with criminal conspiracy and rioting.
The ridiculousness of the charges are patently visible. On 4 November, Shamnath Baghel was killed at his residence in the Tongpal area in Chhattisgarh, allegedly by Maoists. According to the Chhattisgarh police and Inspector General of Police Kalluri, Baghel had been getting threats from the Maoists. Nandini Sundar, Archana Prasad, Vineet Tiwari, Sanjay Parate and an unidentified woman activist from Sukma have been accused of “inciting” adivasis against the government and seeking villagers support for Maoists. It is on the basis of these absurd allegations that Prof. Sundar and others are being charged and harassed.
Earlier this year, those named in the FIR were part of a fact-finding team that documented the repression in Bastar. Prof. Sundar and others have consistently been campaigning against the widespread human rights violations in Chhattisgarh. Time and again, democratic voices have exposed the blatant lies of the police and security forces. They have repeatedly brought to light the continuing impunity with which murders, rapes, fake encounters and widespread intimidation of adivasis is taking place in Bastar.It needs to be remembered that the Chhattisgarh Police was recently indicted by the CBI for not just burning 160 homes in Dantewada in 2011, but also for falsely suggesting that Maoists were responsible for the violence and damage. The current IGP Kalluri was the SSP of Dantewada in 2011 when this incident took place. Prof. Sundar, Swami Agnivesh amongst others had played a crucial role in bringing this horrific episode to light.
Clearly, the FIR now filed against Prof. Sundar and others are a punishment for their daring to expose the reality of Bastar, for daring to speak out against the ongoing brutalities unleashed by the police and security forces and supported by the Raman Singh government in Chhattisgarh. Just two weeks ago, police and special auxiliary forces in Chhattisgarh burnt effigies of critics of human rights violations, including Prof. Sundar, at an official protest two weeks ago. And now this farcical FIR has been filed.
Truth is being turned on its head: those who expose murders by Chhattisgarh police and paramilitary forces are now being booked for murder. We are being asked to believe the opposite of truth. CPI(ML) demands an end to the intimidation and harassment of human rights activists, journalists and scholars exposing the reality of Bastar.
(Prabhat Kumar)
For Politburo, CPI(ML)
प्रो. नन्दिनी सुन्दर व अन्य पर छत्तीसगढ़ में दर्ज एफआईआर रद्द हो!
छत्तीसगढ़ सरकार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, और बुद्धिजीवियों को धमकाना और उत्पीड़न करना बंद करे।
नई दिल्ली, 8 नवम्बर 2016
दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नन्दिनी सुन्दर, जेएनयू की प्रोफेसर अर्चना प्रसाद, सीपीएम के छत्तीसगढ़ राज्य सचिव संजय पराते, दिल्ली के जोशी-अधिकारी संस्थान के विनीत तिवारी और छः अन्य लोगों के विरुद्ध छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दर्ज की गई एफ.आई.आर. की भाकपा(माले) कड़ी निन्दा करती है। इस एफ.आई.आर. में हास्यास्पद रूप से प्रोफसर सुन्दर व अन्य लोगों पर बस्तर में एक आदिवासी की हत्या का आरोप लगाया गया है, जो साफ तौर पर छत्तीसगढ़ में चल रहे राज्य दमन के विरुद्ध बोलने वाली सभी लोकतांत्रिक आवाजों को दबाने व धमकाने की एक चाल है। हत्या के अलावा इन पर आपराधिक साजिश और दंगा करने के आरोप भी जड़ दिये गये हैं।
ये आरोप कितने हास्यास्पद हैं यह कोई भी समझ सकता है। 4 नवम्बर को छत्तीसगढ़ के तोंगपाल में शामनाथ बघेल की कथित रूप से माओवादियों ने हत्या कर दी। छत्तीसगढ़ पुलिस और वहां के आई. जी. पुलिस कल्लूरी के अनुसार मृतक बघेल को माओवादियों की ओर से हत्या की धमकियां मिल रही थीं। नन्दिनी सुन्दर, अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी, संजय पराते और सुकमा की एक अज्ञात महिला कार्यकर्ता आदिवासियों को सरकार के खिलाफ ‘भड़काने’ और माओवादियों के पक्ष में ग्रामीणों का समर्थन जुटाने की आरोपी हैं। ऐसे ही बेतुके ‘आरोपों’ के आधार पर प्रो. सुन्दर व अन्यों पर यह केस लगा कर परेशान किया गया है।
जिन लोगों का इस एफआईआर में नाम डाला गया है, वे इस साल के शुरू में बस्तर में चल रहे दमन की जांच के लिए गई एक फैक्ट-फाइन्डिंग टीम का हिस्सा थे। प्रो. सुन्दर समेत कई लोग छत्तीसगढ़ में व्यापक रूप से हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन के विरुद्ध लगातार अभियान चलाते रहे हैं। अनेकों बार लोकतंत्र पसन्द कई लोगों ने वहां पुलिस और सैन्य बलों के सफेद झूठों का खुलासा किया है। अनेकों बार बस्तर में भारी पैमाने पर और खुलेआम हुई हत्याओं, बलात्कार, झूठे एनकाउन्टरों,और ग्रामीण आदिवासियों को डराने-धमकाने की घटनाओं को सामने लाया गया है। यह भी बताना उपयुक्त है कि हाल ही में सीबीआई की एक जांच में छत्तीसगढ़ पुलिस को दान्तेवाड़ा में वर्ष 2011 में 160 घरों को जलाने का दोषी ही नहीं पाया गया, बल्कि उस हिंसा और आगजनी के लिए माओवादियों को दोषी बताने का आरोपी भी पाया गया है। वहां के वर्तमान आईजी पुलिस कल्लूरी वर्ष 2011 में दांन्तेवाड़ा के एसएसपी हुआ करते थे। प्रोफेसर सुन्दर, स्वामी अग्निवेश और अन्य कई लोगों ने इस भयानक घटना को दुनियां के सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
निस्संदेह रूप से प्रो. सुन्दर और अन्य लोगों के विरुद्ध दर्ज की गई एफआईआर उन्हें बस्तर की सच्चाई सामने लाने के जुर्म की सजा के बतौर है, यह छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार द्वारा समर्थित पुलिस एवं सुरक्षा बलों द्वारा ढाई गई बर्बरताओं के खिलाफ आवाज उठाने की सजा है। मात्र दो सप्ताह पहले ही छत्तीसगढ़ में वहां की पुलिस और स्पेशल ऑक्जिलियरी फोर्सेज द्वारा मानवाधिकार उल्लंघनों की आलोचना करने वालों का ‘ऑफिशियली’ पुतला दहन करने का कार्यक्रम आयोजित किया गया था। और अब यह झूठी एफआईआर दर्ज कर दी गई है।
यह सच को सिर के बल उल्टा लटकाने की एक साजिश हैः जिन लोगों ने छत्तीसगढ़ पुलिस और अर्धसैन्य बलों द्वारा की गई हत्याओं का खुलासा किया उन पर ही हत्या के इल्जाम में केस लगा दिया गया! सच्चाई के विपरीत चलना होगा भाकपा(माले) की मांग है कि सरकार बस्तर की सच्चाई को बाहर लाने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं] पत्रकारों] और बुद्धिजीवियों को धमकाना और उनका उत्पीड़न करना बंद करे।
(प्रभात कुमार)
भाकपा(माले) पोलितब्यूरो की ओर से