अखिल भारतीय किसान महासभा का दूसरा राज्य सम्मलेन 16-17 दिसम्बर को लालकुँआ (नैनीताल) में संपन्न हुआ. इस सम्मलेन के मौके पर एक विशाल रैली 16 दिसम्बर को बिन्दुखत्ता के शहीद स्मारक से लालकुँआ रेलवे स्टेशन तक निकाली गई. बिन्दुखत्ता शहीद स्मारक से लालकुँआ रेलवे स्टेशन तक 1 किलोमीटर की दूरी लाल झंडे से पट गयी. हज़ारों की तादाद में लाल झंडा थामे महिला-पुरुषों के क्रांतिकारी नारों से पूरा रास्ता गूँज उठा. हालाँकि बिन्दुखत्ता से लालकुँआ के बीच न जुलूसों का यह सिलसिला नया था और न ही लोगों का सैलाब नया था. कांग्रेस सरकार तथा कैबिनेट मंत्री हरीश दुर्गापाल जो स्थानीय विधायक भी हैं, उनके द्वारा जबरन बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाने की कोशिशों के खिलाफ लगभग एक वर्ष से अखिल भारतीय किसान महासभा के नेतृत्व में जनता का धारावाहिक आन्दोलन निरंतर चल रहा है. इसी आन्दोलन के क्रम में यह रैली भी एक बार फिर जनता की एकता और संगठित ताकत का प्रदर्शन सिद्ध हुई.
रैली से पूर्व हुई सभा को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुलदू सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार की किसान विरोधी, कारपोरेट परस्त नीतियों ने किसानों को तबाह कर दिया है. कर्ज के बोझ तले दबे किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं. लेकिन किसानों का यह संकट हल करने की परवाह सरकार को नहीं है. कामरेड रुलदू सिंह ने कहा कि पूरे देश में सरकारें किसानों की जमीन छीनने के लिए नित नयी योजनायें ला रही हैं. बिना जनता को जमीन पर मालिकाना अधिकार दिए बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाने के पीछे भी जमीन छीनना ही मुख्य उद्देश्य है.
रैली को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा ने कहा कि बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाने का आदेश यदि वापस नहीं लिया गया और आन्दोलनकारियों पर दर्ज फर्जी मुकदमे वापस नहीं लिए गए तो मुख्यमंत्री हरीश रावत को बिन्दुखत्ता आने पर काले झंडों का सामना करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि यदि 24 फरवरी तक बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाने का आदेश यदि वापस नहीं हुआ तो हज़ारों की तादाद में लोग स्थानीय विधायक और श्रम मंत्री हरीश दुर्गापाल के घर का घेराव करेंगे.
उत्तराखंड के प्रख्यात किसान नेता कामरेड बहादुर सिंह जंगी ने कहा कि रैली में उमड़ी भीड़ से सिद्ध हो गया कि जनता का बहुमत बिन्दुखत्ता में नगरपालिका के खिलाफ है और इस मामले में श्रम मंत्री हरीश दुर्गापाल और हरीश रावत सरकार ने जनता का विश्वास खो दिया है. उन्होंने कहा कि भाजपा के नेता भी इस मामले में जनता को बरगला रहे हैं. विनसर सेंचुरी आन्दोलन के नेता ईश्वर जोशी ने कहा कि जल, जंगल, जमीन जैसे संसाधनों पर जनता के अधिकार निरंतर ख़त्म किये जा रहे हैं. जो राज्य जनता के संघर्षों से बना है उसमें जनता के अधिकारों पर डाकेजनी आम परिघटना बन गयी है.
माकपा से जुडी अखिल भारतीय किसान सभा के वरिष्ठ नेता कामरेड अवतार सिंह ने किसान-मजदूरों के संघर्ष को आगे बढाने के लिए लाल झंडे की ताकतों की एकता वक्त की जरुरत है. संघर्षों के तीव्र दौर में यदि ऊपर से एकता की पहलें नहीं होगी तो नीचे से जनता स्वयं यह एका कायम कर देगी.
वन गुज्जरों के नेता मोहम्मद यामिन ‘बिन्नी’ ने कहा कि वन गुर्ज्जरों को फसल बोने से रोकने और पहाड़ी व अन्य खत्तों को फसल बोने का अधिकार देकर उत्तराखंड सरकार उनकी एकता को खंडित करने की कोशिश कर रही है. सदियों से वनों में रह कर पशुपालन व खेती कर अपना गुजर-बसर कर रहे वन गुर्ज्जरों और सुन्दरखाल के गरीब किसानों को हरीश रावत सरकार ने फसल बोने से रोक कर वनाधिकार कानून 2006 का खुला उलंघन किया है और उनका पुनर्वास भी नहीं किया जा रहा है.
सभा को भाकपा(माले) के जिला सचिव कामरेड कैलाश पाण्डेय, अखिल भारतीय किसान महासभा के आनंद सिंह नेगी, बसंती बिष्ट, मोहम्मद यामिन बिन्नी, सुरेन्द्र बृजवाल, आनंद सिंह सिजवाली, हयात राम, शंकर चुफाल, लक्ष्मण सुयाल, किशन बघरी, पान सिंह कोरंगा आदि ने संबोधित किया. सभा का संचालन कामरेड विमला रौथाण और कामरेड भुवन जोशी ने संयुक्त रूप से किया. सभा में गढ़वाल से आये किसान नेता धन सिंह राणा ने संघर्ष का आह्वान करता स्वरचित गढ़वाली गीत “रे लोगों या लम्बी लड़ै च” गाकर सभा में जोश भर दिया.
सभा के पश्चात सम्मलेन के प्रतिनिधि सत्र की शुरुआत हुई. सम्मलेन स्थल का नामकरण बिन्दुखत्ता के किसान संघर्ष के मजबूत स्तंभ रहे कामरेड मान सिंह पाल के नाम पर किया गया था. इस सत्र में किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा ने चर्चा के लिए दस्तावेज प्रस्तुत किया. उत्तराखंड में कृषि की बदहाली की चर्चा करते हुए दस्तावेज कहता है कि कांग्रेस-भाजपा की सरकारों द्वारा खेती किसानी पर किए जा रहे हमलों के कारण पिछले 15 वर्षों में 15 लाख किसानों को खेती – किसानी छोड़ पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा है. उत्तराखंड आज इन सरकारों की जन विरोधी नीतियों के कारण एक गंभीर भूमि संकट के मुहाने पर खड़ा है. राज्य की कुल भूमि के रकबे का कृषि के लिए अब 9 प्रतिशत भी नहीं बचा है, पहाड़ में तो स्थिति ने और भी विकराल रूप धारण कर लिया है और वहाँ अब लगभग 4 प्रतिशत भूमि पर ही खेती हो पा रही है. फिर भी जिंदल, अदानी, कोका कोला जैसी दर्जनों कारपोरेट कंपनियों, जल विद्युत् परियोजनाओं, सिडकुल के विस्तार और स्टोन क्रशरों के लिए उद्योगपतियों को मैदान से लेकर पहाड़ तक लगभग मुफ्त में हजारों हैक्टेयर कृषि, ग्राम समाज व वन की भूमि लुटाई जा रही है. भूमि की इस लूट को विकास के नारे के साथ अमलीजामा पहनाया जा रहा है. इसका विरोध करने पर किसानों और उनके अगुआ नेताओं को विकास विरोधी बताकर आन्दोलन का दमन किया जा रहा है.
प्रतिनिधि सत्र में तकरीबन प्रतिनिधियों ने चर्चा में हिस्सा लिया और उत्तराखंड में किसान आन्दोलन की मजबूती के लिए सुझाव पेश किये.
सम्मलेन में केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर मौजूद अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य कामरेड गुरनाम सिंह ने उत्तराखंड में किसान महासभा के व्यापक विस्तार पर जोर देने की जरुरत पर बल दिया. उन्होंने देश भर के किसान आन्दोलनों के अनुभवों से सीखने की जरुरत को भी रेखांकित किया.
सम्मलेन को संबोधित करते हुए भाकपा(माले) के राज्य सचिव कामरेड राजेन्द्र प्रथोली ने कहा कि इस दौर में जब किसानों मजदूरों पर हमला बहुत तेज हो गया है तब मजबूत संगठन ही संघर्षों की मजबूत ताकत हो सकता है. इसलिए आन्दोलन और संगठन निर्माण दोनों को ही साथ-साथ चलाने का कौशल विकसित करने की जरुरत है. उन्होंने कहा कि लाल झंडे के नेतृत्व में 40 वर्षों से अनवरत जारी बिन्दुखत्ता का संघर्ष किसान आन्दोलन की एक मजबूत मिसाल है.
भाकपा(माले) के केन्द्रीय कमेटी सदस्य कामरेड राजा बहुगुणा ने कहा कि मोदी की सरकार आने की बाद किसान-मजदूरों पर हमला बहुत तेज हुआ है. मोदी पूरी दुनिया घूमते रहे और भारत का निर्यात गिर गया. अदानी की संपत्ति जरूर 49 फ़ीसदी बढ़ गयी. किसान-मजदूरों पर हमला बोलने वाली मोदी सरकार को पहली शिकस्त भी किसानों ने ही दी जब मोदी सरकार को भूमि अधिग्रहण के मामले में घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ा. कामरेड राजा बहुगुणा ने कहा कि उत्तराखंड में हरीश रावत, मोदी की ही नीतियां लागू कर रहे हैं और उन्ही की तरह जुमलेबाजी कर रहे हैं. हरीश रावत ने पूरी तरह उत्तराखंड में माफिया राज कायम कर लिया. वाम-जनवादी ताकतों की मजबूती और एकजुटता के जरिये ही जनविरोधी सरकारों को मुंह तोड़ जवाब दिया जा सकता है.
सम्मलेन के अंत में अखिल भारतीय किसान महासभा की राज्य कार्यकारिणी व परिषद चुनी गयी. कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा प्रदेश अध्यक्ष, कामरेड अतुल सती राज्य सचिव तथा कामरेड बहादुर सिंह जंगी को वरिष्ठ उपाध्यक्ष चुना गया. साथ ही कामरेड भुवन जोशी, आनंद सिंह नेगी, विमला रौथाण, सुरेन्द्र सिंह बृजवाल, धन सिंह राणा, मोहम्मद यामिन ‘बिन्नी’, लक्ष्मण सुयाल, हयात राम, बसंती बिष्ट, आनंद सिंह सिजवाली, धन सिंह बिष्ट, दान सिंह भंडारी, मीना मेहता, शंकर चुफाल, गोपाल दत्त जोशी, गणेश दत्त पाठक, नारायण सिंह, गुलाम नबी, राजेन्द्र शाह को राज्य समिति में चुना गया.
सत्ता तंत्र द्वारा रैली को विफल करने के लिए सत्ता द्वारा अपना सब कुछ झोंकना भी अखिल भारतीय किसान महासभा की रैली की विशिष्टता रही. इस रैली से कुछ दिन पूर्व नगरपालिका के समर्थन में श्रम मंत्री हरीश चन्द्र दुर्गापाल (जो कि स्थानीय विधायक भी हैं) ने रैली करने का प्रयास किया. लेकिन वे मुट्ठीभर कांग्रेसियों को ही जुटा सके. अपनी रैली की विफलता से बौखलाए मंत्री समर्थकों और कांग्रेसियों ने अखिल भारतीय किसान महासभा की रैली को असफल करने की हर मुमकिन कोशिश की. कांग्रेसियों और मंत्री समर्थकों ने पूरे बिन्दुखत्ता में घूम-घूम कर रैली के बारे में दुष्प्रचार किया. पुलिस के जरिये भी लोगों को डरा-धमका कर रैली में आने से रोकने की कोशिश हुई. लेकिन इन तमाम प्रयासों को धता बताते हुए भारी तादाद में लोग रैली में शामिल हुए.
कामरेड पंकज विद्रोही की अगुवाई में “हम होंगे कामयाब” के सामूहिक गान के साथ सम्मलेन संपन्न हुआ.