हल्द्वानी में राज्यव्यापी कार्यक्रम के तहत ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन द्वारा जोरदार प्रदर्शन कर केंद्र सरकार का पुतला दहन किया गया। इस दौरान महिला चिकित्सालय के सामने पुलिस द्वारा आशाओं को जबरन पुतला फूँकने से रोकने की और सड़क से हटाने की कोशिश की। पुलिस और सिटी मजिस्ट्रेट से आशाओं की इसको लेकर तीखी नोक झोंक हुई। सी पी यू के कुछ पुरुष पुलिसकर्मियों द्वारा धक्का देने पर आशाओं ने पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाने शुरू करते हुए जोरदार प्रतिकार किया।उसके बाद पुतला दहन किया और नारेबाजी करते हुए जुलूस की शक्ल में उपजिलाधिकारी कार्यालय पहुंचकर प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन प्रेषित किया।
हल्द्वानी के अतिरिक्त नैनीताल, गरमपानी, रामनगर, बाज़पुर, रानीखेत, डीडीहाट, पिथौरागढ़, गंगोलीहाट, चंपावत, बागेश्वर, लोहाघाट, पाटी, टनकपुर आदि स्थानों पर भी जोरदार प्रदर्शन कर आशाओं ने केंद्र सरकार का पुतला फूंकते हुए कहा कि- केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण स्वास्थ्य खास तौर पर मातृ-शिशु सुरक्षा हेतु पूरे देश में आशाओं को भर्ती किया गया था। आज की तारीख में देश के नौ राज्यों में आशाओं को मासिक मानदेय मिलता है, परन्तु उत्तराखण्ड की आशाओं को कोई मासिक वेतन या मानदेय प्राप्त नहीं होता है। उत्तराखण्ड की आशाओं के साथ यह भेदभाव क्यों किया जा रहा है। यहाँ मासिक वेतन क्यों नहीं दिया जा रहा है। केंद्र सरकार पूरे देश की आशाओं के लिये समान नीति लागू क्यों नहीं कर रही है, यह समझ से परे है। उत्तराखंड की आशाएँ ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के नेतृत्व में 11 जुलाई 2016 से कार्य बहिष्कार पर हैं परंतु सरकारें आशाओं की उपेक्षा कर रही है। सरकारों के इस उपेक्षापूर्ण रवैये के ख़िलाफ़ ही आशाएँ आंदोलन में उतरी हैं।
उत्तराखण्ड में आशायें मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी, पल्स पोलियो अभियान, परिवार कल्याण, मलेरिया सर्वे, ओ.आर.एस. वितरण, महिला हिंसा पर निगाह रखना, मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना सर्वे से लेकर आपदा ट्रेनिंग तक अनेकों कामों से लाद दी गयी हैं। परन्तु मासिक वेतन या मानदेय के नाम पर आशाओं को एक रुपया भी नसीब नहीं होता है। ये सरकार की नीतियों पर एक प्रश्नचिन्ह है।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर प्रधानमंत्री से मांग की गयी कि-
- आशाओं को वर्कर का दर्जा देते हुए सातवें वेतन आयोग की न्यूनतम वेतन की सिफारिश के आधार पर पूरे देश में एकसमान न्यूनतम मासिक वेतन 18000 रूपये दिया जाय. जब तक ऐसा नहीं होता तब तक 45 वें श्रम सम्मेलन की सिफारिशों के अनुरूप वेतन दिया जाय.
- आशाओं का नियमितीकरण करते हुए राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया जाय.
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के बजट में केंद्र सरकार द्वारा की गयी बजटकटौती वापस ली जाय.
आज के महिला चिकित्सालय के सामने आशा यूनियन द्वारा पुतला दहन और जुलुस के बाद कैलाश पांडेय और 11 आशाओं पर हाइवे जाम का मुकदमा पुलिस द्वारा दर्ज किया गया। आज ही बीजेपी का भी जुलूस-प्रदर्शन-पुतला दहन कार्यक्रम था। बीजेपी के पुतला दहन करने के समय उपजिलाधिकारी कार्यालय हल्द्वानी के समक्ष लगभग 25 मिनट जाम हुआ, आशाओं ने पुतला महिला अस्पताल के सामने फूंका और उसमें काफी कम समय ही जाम रहा। पुलिस प्रशासन की नजर में आशाओं का पुतला दहन और जाम मुक़दमे के लिए काफी रहा, जबकि बीजेपी पर कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। यानी आशाओं का शोषण तो केंद्र राज्य सरकारों के हाथों हो ही रहा था अब आशाओं को हल्द्वानी पुलिस प्रशासन द्वारा जेल भी भिजवाया जा रहा है। जबकि यही पुलिस प्रशासन बीजेपी पर मुक़दमा दर्ज करने से घबरा रहा है। पुलिस और प्रशासन का यह रवैय्या घोर निंदनीय है।