अखिल भारतीय किसान महासभा द्वारा राज्यपाल को राज्य में सूखे की भयावह स्थिति के चलते उत्तराखण्ड को सूखा पीड़ित राज्य घोषित करने के सम्बंध में ज्ञापन दिया गया. उत्तराखण्ड के सभी जिला मुख्यालयों एवं अधिकांश तहसीलों में महसभा के प्रतिनिधियों द्वारा इस सम्बंध में प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से ज्ञापन दिया गया.
ज्ञापन में कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य के सभी पर्वतीय जिलों (कुछ उच्च हिमालयी क्षेत्रों को छोड़कर) और भाबर क्षेत्र में सितम्बर 2015 से अब तक बारिश ना के बराबर हुई है. यही नहीं इस बार उत्तराखंड में बर्फ भी काफी कम पड़ी है. जिसके चलते राज्य के पर्वतीय जिलों और भाबर क्षेत्र में फसलों को भारी नुकसान हुआ है. अभी गर्मी की शुरुआत ही हुई है मगर पानी के लिए कई क्षेत्रों में हा–हा कार मचना शुरू हो गया है. पानी के श्रोत सूख रहे हैं और गाड़–गधेरों का भी सूखना अभी से शुरू हो गया है. नैनीताल की झील का भारी पैमाने पर गिरता जलस्तर इसका जीता-जागता प्रमाण है.
विभिन्न जिलों की भयावह स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि अल्मोड़ा, पौड़ी और चम्पावत जिलों में लगभग 80 से 90 प्रतिशत तक सूखा पड़ा है. इन जिलों में सूखे के कारण रबी फसल के बोए गए क्षेत्र के लगभग 25 प्रतिशत में खेत की मिट्टी में दबे बीज का अंकुरण ही नहीं हो पाया था. जो बीज अंकुरित होकर बाहर आया पानी के अभाव में सूख गया. इसी तरह पिथौरागढ़, बागेश्वर जिले व नैनीताल जिले का पर्वतीय क्षेत्र, टिहरी, चमोली, रुद्रप्रयाग जिले और देहरादून के पर्वतीय क्षेत्र सहित सभी पर्वतीय जिलों में भी लगभग 70 प्रतिशत सूखे के कारण रबी फसलों को भारी क्षति हुई है. उत्तराखंड के सम्पूर्ण भाबर क्षेत्र में जो टनकपुर से कोटद्वार तक फैला है इस बार रबी फसल के उत्पादन में सूखे के कारण 35 प्रतिशत तक की गिरावट आई है. बारिश न होने के कारण फलों का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर प्रभावित हुआ है.
निवर्तमान हरीश रावत सरकार और प्रशासन पर घोर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए खा गया है कि हरीश रावत सरकार और अब उत्तराखंड शासन ने उत्तराखंड के सूखे से प्रभावित इस इतने बड़े भू – भाग को अब तक भी सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया है. इससे राज्य के लाखों गरीब किसानों और आम नागरिकों के प्रति उत्तराखंड सरकार / शासन के असंवेदनशील रवैये की पुष्टि होती है.
अखिल भारतीय किसान महासभा ने ज्ञापन के माध्यम से तीन सूत्री मांग की है कि, उत्तराखंड के सम्पूर्ण पर्वतीय क्षेत्र और भाबर क्षेत्र को सूखा ग्रस्त घोषित किया जाए, सूखाग्रस्त क्षेत्र के सभी किसानों को जिनमें वन भूमि में बसे गरीब किसान और बटाईदार भी शामिल हैं को नुकसान के हिसाब से 20 हजार रूपए प्रति एकड़ सूखा राहत दिया जाय तथा सूखा प्रभावित क्षेत्रों में बढ़ रहे पेयजल संकट के समाधान के लिए तत्काल योजना बनाई जाए और लोगों को गाँव व शहर – कस्बों में पीने का पानी उपलब्ध कराये जाने की गारंटी की जाए.
ज्ञापन की एक प्रति प्रधान न्यायाधीश महोदय, सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली को भी प्रेषित की गयी है.