रुद्रपुर, 05 जून 2016,
मजदूर नेता और “ऐक्टू” के प्रदेश महामंत्री के. के. बोरा पर हमले के सोलह दिन बीत जाने के बाद भी हमलावरों की गिरफ्तारी न होने के खिलाफ ‘ऐक्टू’ के आवाहन पर रुद्रपुर के अम्बेडकर पार्क में ‘मजदूर प्रतिरोध सभा’ का आयोजन किया गया। जिसमें विभिन्न यूनियनों, संगठनों व पार्टियों ने भागीदारी कर प्रशासन से हमले के नामजद अभियुक्त व अन्य हमलावरों को तत्काल गिरफ्तार करने की एक स्वर से मांग की।
‘मजदूर प्रतिरोध सभा’ को सम्बोधित करते हुए ‘ऐक्टू’ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजा बहुगुणा ने कहा कि, “सरेआम दिन के वक्त राष्ट्रीय राजमार्ग पर मजदूर नेता के ऊपर जानलेवा हमला किया गया, उनके अपहरण का प्रयास किया गया लेकिन 16 दिन बीत जाने के बाद भी हमलावर खुलेआम घूम रहे हैं। हरीश रावत की सरकार में उत्तराखण्ड में कानून का नहीं जंगल राज चल रहा है।” उन्होंने कहा कि, “मजदूरों के शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे आंदोलन को सिडकुल के मालिकान और पुलिस गठजोड़ अपनी कार्यवाही से उकसाना चाहता है। ‘मजदूर प्रतिरोध सभा’ के परचे बांट रहे श्रमिक नेताओं को परचे बांटने जैसे लोकतांत्रिक अधिकार से भी वंचित कर उनके खिलाफ सिडकुल चौकी इंचार्ज ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मुकदमा दर्ज कर दिया है। इससे पहले 19 मई को भी के. के. बोरा को पुलिस ने जबरन उठाने की कोशिश की थी। इन सब घटनाओं से पुलिस-मैनैजमेंट की मिलिभगत साफ उजागर होती है।”
राजा बहुगुणा ने कहा कि, “’ऐक्टू’ और सिडकुल के मजदूरों की लड़ाई सरकार द्वारा सिडकुल के लिये बनायी गयी नीति – कोई यूनियन नहीं – कोई न्यूनतम मजदूरी नहीं – कोई हड़ताल नहीं – कोई लोकतांत्रिक अधिकार नहीं के खिलाफ है। मजदूर सरकार और पूंजीपतियों की इस नीति को बदलने की लड़ाई लड़ रहे हैं और जब तक मजदूरों के लोकतांत्रिक अधिकारों व श्रम कानूनों की बहाली सिडकुल में नहीं होती यह लड़ाई जारी रहेगी।”
भाकपा (माले) के राज्य सचिव राजेंद्र प्रथोली ने कहा कि, “सिडकुल में मजदूर संघर्ष के अगुवा नेता के. के. बोरा पर हमला कर मिंडा मैंनेजमेंट ने मजदूरों का हौसला तोड़ने की कोशिश की लेकिन मजदूरों ने साबित कर दिया है कि ऐसे हमले उनका मनोबल नहीं तोड़ सकते।” उन्होंने कहा कि, “हरीश रावत ने साबित कर दिया है कि उनकी सरकार श्रम कानूनों के उल्लंघन और श्रमिक उत्पीड़न में मोदी सरकार से कहीं भी कम नहीं है। हरीश रावत ने सत्ता में वापसी कर अपने लोकतन्त्र को तो बहाल कर दिया है पर इस पूरे प्रकरण के संज्ञान में होते हुए भी मजदूरों के लोकतंत्र की बहाली और हमलावरों की गिरफ्तारी पर सोची समझी उदासीनता ओढ़ ली है।”
‘ऐक्टू’ के प्रदेश महामंत्री के. के. बोरा ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि, “सिडकुल में शासन-प्रशासन द्वारा निवेश के नाम पर ट्रेड यूनियन अधिकारों को प्रतिबंधित किया जा रहा है। लम्बे समय से चल रहे इस रवैय्ये के खिलाफ मजदूरों ने संघर्ष के बूते ही इतनी यूनियनें खड़ी की हैं। इस संघर्ष के प्रमुख नेता के. के. बोरा को निशाना बनाकर पूंजीपतियों ने अपने भीतर के डर को ही प्रदर्शित किया है। पूंजीपतियों के इस तरह के कायराना हमले मजदूर संघर्ष को नहीं रोक पाएंगे।”
अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष पुरुषोत्तम शर्मा ने कहा कि, “उत्तराखण्ड में लोकतांत्रिक तरीकों से आंदोलन करने वालों पर हमला एक आम परिघटना बनती जा रही है, जो कि चिंताजनक है। मुद्दों पर असहमति का बदला शारीरिक हमले से लेना एक गलत परिपाटी को जन्म देगा जो कि इस राज्य के भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है।”
उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय महासचिव प्रभात ध्यानी ने कहा कि, “राज्य में सरकार पर खनन माफिया, जमीन मफिया, शराब माफिया और पूंजीपतियों का दबाव इतना अधिक हो गया है कि वे जनता की किसी आकंक्षा को समझने को तैयार ही नहीं है। नैनीसार हो, बिंदुखत्ता हो या सिडकुल हो, हर जगह जनाधिकारों को कुचला जा रहा है। इस दमन के खिलाफ संघर्षशील ताकतों को एक होना होगा।”
अखिल भारतीय किसान सभा के नेता अवतार सिंह ने कहा कि, “लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले के खिलाफ राज्य में एक बड़ी किसान-मजदूर एकता की जरूरत है। एक बड़ा किसान-मजदूर संयुक्त आंदोलन ही इस राज्य की दिशा और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिये आज की आवश्यक्ता है।”
‘मजदूर प्रतिरोध सभा’ को आशा यूनियन कि प्रदेश अध्यक्ष कमला कुंजवाल, लठ्ठा यूनियन के अध्यक्ष मुबारक शाह, इमके संयोजक कैलाश भट्ट, हाई कोर्ट के एडवोकेट दुर्गा सिंह मेहता, बैंक यूनियन नेता के. एन. शर्मा, ब्रिटानिया के अध्यक्ष गणेश मेहरा, थाई सुमित यूनियन अध्यक्ष भगवान सिंह, एडवोकेट निसार अंसारी, सेंचुरी यूनियन नेता किशन बघरी, आटोलाइन इण्डस्ट्री के संजय कोटिया, किसान नेता बहादुर सिंह जंगी, ऐक्टू नेता कैलाश पाण्डेय, आशा नेता ममता पानू, रीना बाला, रीता कश्यप, बसंती बिष्ट, विमला रौथाण, भुवन जोशी, निरंजन लाल, अजीत साहनी, ललित मटियाली, रूबी भारद्वाज आदि ने भी सम्बोधित किया। सभा में इस संघर्ष को जारी रखने का प्रस्ताव लिया गया।