भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के राज्य सम्मलेन का उद्धघाटन राष्ट्रीय महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य करेंगे

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( माले ) का दो दिवसीय राज्य सम्मलेन 19 – 20 मार्च 2016 को श्रीनगर गढ़वाल में होगा. सम्मलेन का उद्धघाटन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य करेंगे. भाकपा ( माले ) ने अपने दूसरे राज्य सम्मलेन में 19 मार्च के पहले सत्र को खुले सत्र के रूप में आयोजित करने का फैसला किया है. इसमें राज्य में जारी भूमि लूट और राज्य दमन के खिलाफ वैकल्पिक राजनीति की धारा को मजबूत करने के उद्येश्य से राज्य में कार्यरत वामपंथी पार्टियों और लोकतांत्रिक संगठनों को भी आमंत्रित किया गया है. इसके लिए भाकपा के राज्य सचिव आनंदसिंह राणा, माकपा के राज्य सचिव राजेन्द्रसिंह नेगी, उक्रांद के केन्द्रीय अध्यक्ष पुष्पेश त्रिपाठी, उत्तराखंड महिला मंच की संयोजक कमला पन्त ने सम्मलेन में आने की संस्तुति दे दी है. पार्टी ने सम्मलेन में उत्तराखंड लोक वाहनी और उपपा को भी आमंत्रित किया है.

अपनी असफलताओं और महत्वपूर्ण सवालों से देश का ध्यान हटाने के लिए आज भाजपा और संघ परिवार अंधराष्ट्रवाद को बढ़ावा देकर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करने के षड़यंत्र में लगे हैं. इसके लिए एक बड़ी साजिश के तहत जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा संस्थान को बदनाम किया जा रहा है. दरअसल बिना नेट वाले अभ्यर्थियों के शोध छात्रवृत्ति बंद करने और उच्च शिक्षा को गेट्स कायदों के अनुसार खरीदने-बेचने या निजी हाथों में देने की दिशा में मोदी सरकार ने कदम बढ़ा दिए हैं. इससे गरीब परिवार के बच्चों के लिए उच्च और व्यावसायिक शिक्षा के दरवाजे बंद हो जाएंगे. इसके खिलाफ सड़क पर उतरे देश भर के छात्र-छात्राओं के “ऑक्युपाइ यूजीसी आन्दोलन” पर बेरहमी से दमन ढाया गया. इसके साथ ही रोहित बेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर कराने में केंदीय मंत्री स्मृति ईरानी व बंडारू दत्तात्रेय की भूमिका के चलते उनके इस्तीफे की मांग पर देश भर में छात्र आन्दोलन उबाल पर आ गया. इस आन्दोलन का नेतृत्व जेएनयू छात्र संघ, आइसा और अन्य वाम व प्रगतिशील छात्र संगठन कर रहे थे. जेएनयू को इसी कारण संघी साजिश का शिकार बनाया जा रहा है.

यह सरकार नगर पालिका के खिलाफ और जमीन पर मालिकाने के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले बिन्दुखत्ता के किसानों और उनके नेताओं पर फर्जी मुक़दमे लाद रही है. यही नहीं रावत सरकार आन्दोलनकारी महिलाओं पर अपने दबंग और अपराधी प्रवृति के कार्यकर्ताओं से हमले तक करा रही है. इसी तरह अल्मोड़ा के नैनिसार में जिंदल समूह को गाँव की 353 नाली बेनाप जमीन गुपचुप तरीके से सौंप दी गयी और विरोध करने पर आन्दोलनकारियों पर हमले हुए और फर्जी मुकदमे लादे गए. यही स्थिति मलेथा में भी दोहराई जा रही है. राज्य बनने के बाद पहाड़ से पलायन की गति और तेज हो गयी. इसका नतीजा यह हुआ कि पौड़ी और अल्मोड़ा जैसे जिलों में जनसँख्या वृद्धि की दर नकारात्मक हो गयी है. इन 15 वर्षों में 15 लाख लोगों का पलायन और पहाड़ में 1500 से अधिक गाँव ऐसे हो गए हैं,जिनमें पूरी तरह ताले पड़े हुए हैं.

सरकारी क्षेत्र हो या गैर सरकारी, सब जगह युवा सिर्फ ठेके का मजदूर बनने को अभिशप्त है. सिडकुल के तहत लगने वाले उद्योगों में उद्योगपतियों को तमाम तरह की छूटें हासिल हैं लेकिन इन फैक्ट्रियों में ठेका विधि के कारण काम करने वाले मजदूरों को न न्यूनतम वेतन ही मिल पाता है और न न्यूनतम कार्यावधि ही सुनिश्चित है. यूनियन बनाने के अधिकार समेत तमाम श्रम कानूनों से वे वंचित हैं. श्रम कानूनों के तहत वाजिब हकों के मांग करने वालों के खिलाफ पुलिस से लेकर प्रशासन तक फैक्ट्री मालिकों के लठैतों की तरह पेश आते हैं.

आशा, आंगनबाड़ी, भोजन माता के रूप में कार्यरत महिला कामगार पूर्णतः सरकारी उपेक्षा के शिकार हैं. आशाओं को तो कोई मासिक मानदेय तक नहीं दिया जाता है. बाकी महिला कामगारों को जो मानदेय दिया जाता है वह भी नाकाफी है. इन महिला कामगारों के न्यूनतम वेतन की गारंटी करते हुए, इन्हें सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाना चाहिए. पिछले दिनों देहरादून के सरकारी नारी निकेतन में बलात्कार और संवासिनियों की मौतें हुई उससे ऐसा लगता है कि राज्य में महिलाएं सरकारी संरक्षण गृहों में तक असुरक्षित हैं. बिन्दुखत्ता के संजना हत्याकांड में जिस तरह अपराधी को सरकार ने अदालत में बच निकलने का मौका दिया, उससे उसकी पक्षधरता साफ़ हो गयी है.

समर्थकों द्वारा जमीन से जुड़े आदमी बताये जा रहे मुख्यमंत्री हरीश रावत कुछ ठोस नीतियां बनाते जो पहाड़ के आम लोगों के विकास के लिए उपयोगी होती. पर्वतीय कृषि को लाभकारी बनाने के उपाय के तहत भूमि बंदोबस्त और भूमि सुधार किया जाता. चकबंदी की दिशा में कदम बढ़ाये जाते. कृषि को आर्थिकी का आधार बनाने के लिए पहाड़ में बेनाप–बंजर भूमि में कृषि क्षेत्र का विस्तार, जंगली जानवरों से खेती की रक्षा और बृक्षों के व्यावसायिक उत्पादन का अधिकार जैसे उपाय किए जाते. लेकिन जनता के संघर्षों से बने  राज्य को एक भ्रष्ट, संसाधनों की लूट और माफियाओं की ऐशगाह वाले राज्य में तब्दील कर दिया गया है.

राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने लोकसभा चुनाव के उपरान्त अपने सभी विधायकों और दर्जनों माफिया – दबंग लोगों को मंत्री पद का दर्जा दे दिया. सार्वजनिक धन की इससे खुली लूट और भला क्या हो सकती है. यह सरकार खुले आम माफियाओं, तस्करों के पक्ष में खड़ी नजर आती है. हरियाली को लील जाने वाले स्टोन क्रशरों को भी खुली छूट दी जा रही है. जिस तरह से कांग्रेस-भाजपा के नेता-कार्यकर्ताओं को खनन के पट्टों का आवंटन हुआ है, उससे साफ़ है कि हरीश रावत सबको उपकृत कर रहे हैं. मगर राज्य सरकार व क्रशर मालिकों की मिलीभगत से गोला, कोसी और अन्य सहायक नदियों में इस कारोबार से जुड़े लाखों मजदूरों और वाहन स्वामियों की रोजी-रोटी को छीना जा रहा है.

भाकपा ( माले ) राज्य में साम्प्रदायिक और कारपोरेट गठजोड़ के हमलों का प्रतिरोध करेगी. पार्टी राज्य में सत्ता के संरक्षण में जारी भूमि लूट और राज्य दमन के खिलाफ संघर्ष को तेज करते हुए उत्तराखंड में वामपंथ की राजनीतिक दावेदारी को मजबूत करेगी. उन्होंने कहा कि भाकपा (माले) का दूसरा राज्य सम्मलेन कांग्रेस – भाजपा के खिलाफ राज्य की राजनीति को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगा.

पत्रकार वार्ता में पार्टी के राज्य स्थाई समिति के सदस्य पुरुषोत्तम शर्मा, इन्द्रेश मैखुरी, अतुल सती, के. पी. चंदोला भी शामिल थे.

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