केंद्र की मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों की आलोचना करते हुए भाकपा (माले) के महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य कहा कि “केंद्र की मोदी सरकार निरंतर आम जनता पर हमला बोल रही है. कर्मचारियों के ई.पी.एफ़. पर टैक्स लगाने की कोशिश में सरकार को मुंह की खानी पड़ी. अब सरकार ने छोटी बचत की ब्याज दर में लगभग एक प्रतिशत तक की कटौती करने का फैसला लिया है. मध्यवर्ग को, वरिष्ठ नागरिकों आदि को इसकी मार झेलनी पड़ेगी. यह लोगों को चिट फंड कंपनियों की तरफ धकेलने की ही सरकार की कोशिश है.”
भाकपा (माले) के दूसरे राज्य सम्मेलन के अवसर पर श्रीनगर (गढ़वाल) में पत्रकार सम्मेलन में बोलते हुए कॉमरेड दीपंकर ने कहा कि केंद्र में मोदी सरकार काला धन वापस लाने के नारे के साथ सत्ता में आई थी. लेकिन काला धन वापस नहीं आया बल्कि इसके उलट माल्या जैसों को देश का धन लेकर भागने की छूट सरकार ने दे दी है. देश के बड़े पूंजीपति जिस तरह सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों का हज़ारों करोड़ रूपया दबाये बैठें हैं, वह इन बैंकों को तबाह करने और सार्वजनिक धन की लूट करने का सरकारी षड्यंत्र है. किसान मामूली कर्ज न चुका सकने के चलते आत्महत्या करने को विवश हो रहे हैं और हज़ारों करोड़ का कर्ज लेने वाले सरकारी संरक्षण में सार्वजानिक धन की लूट करके फरार हो रहे हैं. मोदी सरकार ने जनधन योजना घोषित की लेकिन पूंजीपतियों को जन का धन लूट कर भागने की खुली छूट दे दी है.
मंहगाई, काला धन, विकास जैसे मसलों पर बोलते हुए कॉमरेड दीपंकर ने कहा कि इन मुद्दों पर ठोस नीति के अभाव से विफल रहने के चलते मोदी सरकार, भाजपा और आर.एस.एस. राष्ट्रवाद के नाम पर देश में उन्माद खड़ा कर रही है. देश के संसाधनों की लूट करने वाले और गरीब, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासियों आदि विरोधी नीतियां लागू करने वाले स्वयं को सर्वाधिक राष्ट्रवादी बता रहे हैं. राष्ट्र सिर्फ नक्शा भर नहीं है बल्कि देश के लोगों से बनता है. आजादी के आन्दोलन में राष्ट्रवाद का प्रयोग देश को जोड़ने के लिए किया गया था. लेकिन भाजपा का तथाकथित राष्ट्रवाद देश को तोड़ने में इस्तेमाल किया जा रहा है. राष्ट्रवाद के नाम पर फैलाये जा रहे इस उन्माद के खिलाफ वामपंथी छात्र-युवा संगठन भगत सिंह के शहादत दिवस से लेकर बाबा साहब अम्बेडकर के जन्मदिवस तक 23 मार्च – 14 अप्रैल तक “उठो मेरे देश” अभियान चलाएंगे.
उन्होंने आगे कहा कि अंग्रेजों के समय के राजद्रोह कानून को समाप्त किया जाना चाहिए. इस कानून का उपयोग देश में सरकारें विरोधी मत को कुचलने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं. जिस कानून का प्रयोग अंग्रेजों ने तिलक, गांधी, भगत सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को प्रताड़ित करने के लिए किया, उसी कानून का उपयोग छात्र-युवाओं व अन्य संघर्षशील हिस्सों का दमन करने के लिए किया जा रहा है. इस तरह के दमनकारी कानून की किसी आज़ाद और लोकतांत्रिक देश में कोई जगह नहीं हो सकती है.
उत्तराखण्ड के संदर्भ में उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में चल रही राजनीतिक उठापटक कांग्रेस-भाजपा के नेताओं की सिद्धान्तहीन सत्तालोलुपता को ही प्रदर्शित करती है. सरकार यदि बहुमत सिद्ध करने में नाकाम रहती है तो तत्काल नया चुनाव होना चाहिए. उत्तराखंड जैसे राज्य संसाधनों की लूटगाह बने हुए हैं. उत्तराखंड की विशेष भौगौलिक परिस्थितियों के हिसाब से नीतियां बनाने की जरुरत थी. लेकिन यहाँ झारखण्ड की तरह सिर्फ मुख्यमंत्री बनने की होड़ कांग्रेस-भाजपा के नेताओं में लगी हुई है. राज्य की वामपंथी-लोकतांत्रिक ताकतों को इसके विरुद्ध साझा संघर्ष चलाने की आवश्यकता है. कांग्रेस-भाजपा की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ समझौताविहीन संघर्ष चला कर ही उत्तराखंड में वैकल्पिक राजनीति को स्थापित किया जा सकता है.