रसोइया संघ व ऐपवा के बैनर तले हजारों रसोइयों का राज्यव्यापी प्रदर्शन

पटना 12 फरवरी 2015

अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आज दिनांक 12 फरवरी को बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ व ऐपवा के बैनर तले हजारों रसोइयों ने विभिन्न जिलों में जिलाधिकारी के समक्ष प्रदर्शन किया. राजधानी पटना में प्रदर्शन का नेतृत्व ऐपवा की राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे, राज्य सह सचिव अनिता सिन्हा, पटना की ऐपवा अध्यक्ष लीला वर्मा, उपाध्यक्ष सह सींही पंचायत की मुखिया आशा देवी, सचिव दमयंती सिन्हा, पटना नगर अध्यक्ष मधु, सह सचिव अनुराधा, बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ की फतुहा अध्यक्ष चंद्रावती देवी, सचिव सोना देवी, पुनपुन सचिव जयंती देवी, अध्यक्ष सावित्राी देवी, मुखिया रेखा देवी, पूर्व मुखिया कमला देवी तथा आइसा नेता नीतू साह ने किया.

वहीं, भोजपुर में प्रदर्शन का नेतृत्व ऐपवा की महासचिव काॅ. मीना तिवारी, भोजपुर ऐपवा की नेता इंदू सिंह, शोभा मंडल, संगीता सिंह, नीलम देवी आदि ने किया. सीवान में में प्रदर्शन का नेतृत्व सोहिला गुप्ता, मालती राम व कुमांती राम आदि ने किया. नवादा में ऐपवा की राज्य सचिव शशि यादव, सावित्राी देवी, सुदामा देवी आदि ने किया. गया में प्रदर्शन का नेतृत्व रीता बरनवाल ने संभाल रखा था. इसके अलावा जहानाबाद, अरवल, दरभंगा, भभुआ आदि जगहों पर भी कार्यक्रम हुए.

पटना में प्रदर्शन-जुलूस स्थानीय बुद्ध पार्क से निकल कर डाक बंगला चौराहा, फ्रेंजर रोड होते हुए पटना समाहरणालय पहुंचा जहां एक सभा का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता लीला वर्मा ने किया. सभा को संबोध्ति करते हुए वक्ताओं ने कहा कि बिहार में रसोइयों की स्थिति बेहद दयनीय है. उन्हें मात्रा एक हजार रुपया प्रति माह मिलता है, वह भी साल में मात्रा दस महीने के लिए जबकि बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के संकल्प संख्या 2401/20.7.2007  के अनुसार रसोइयों का मानदेय 15,000 रुपये से कम नहीं होना चाहिए. इसी काम के लिए तमिलनाडु में रसोइयों को 5,500 से 9,000 रु. के बीच, केरल में 4,500 से 6,000 रु. के बीच, पुदुच्चेरी में 5,000 से 9,000 रु. के बीच, लक्ष्यद्वीप में 6,000 रुपये और पश्चिम बंगाल में 1500 रुपये मानदेय के रूप में प्राप्त होते हैं. लेकिन बिहार में 8 घंटे काम करने के बावजूद महिलाओं को मात्रा 33 रुपये रोजाना मिलता है. यही नहीं, उनका मानदेय कई-कई माह तक लंबित भी रहता है और मानदेय का भुगतान उनके खाते पर भी नहीं होता है.

आगे वक्ताओं ने कहा कि रसोइयों को न तो दुर्घटना बीमा का लाभ मिलता है और न ही स्वास्थ्य बीमा का. उन्हें बात-बात पर काम से निकाल देने की धमकी भी दी जाती है. ऐसे असुरक्षा के माहौल में वे रोज 7-8 घंटे तक काम करती हैं. उनसे ऐसे भी काम करवाये जाते हैं जो उनके निर्धरित काम के दायरे में नहीं आते. मुख्य मंत्राी बदल रहे हैं, पार्टियां बदल रही हैं, लेकिन रसोइयों की स्थिति जस-की-तस बनी हुई है.

उन्होंने कहा कि अब रसोइयां अपनी स्थिति में बदलाव लाने के लिए संगठित होकर संघर्ष करेंगी. उनके एक 7-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने जिलाधिकारी कार्यालय में अपनी मांगों के संदर्भ में ज्ञापन भी सौंपा.

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