किसानों, भूमिहीनों, महिलाओं, नौजवानों की सम्मिलित शक्ति की मिसाल है बिन्दुखत्ता नगर पालिका विरोधी आंदोलन

अपनी पूर्व घोषणा के तहत अखिल भारतीय किसान महासभा के बैनर तले 1 अप्रैल 2015 को हजारों किसानों ने उत्तराखंड के नैनीताल जिले की लालकुआं तहसील का घेराव किया. पिछले साढ़े तीन माह से बिन्दुखत्ता को नगर पालिका बनाने के खिलाफ चल रहे धारावाहिक किसान आन्दोलन के प्रति राज्य सरकार के उदासीन रवैये से गुस्साए बिन्दुखत्ता के हजारों किसान हाथों में लाल झंडा लिए सुबह से ही लालकुआं तहसील पर जुटना शुरू हो गए थे. मुख्यमंत्री हरीश रावत और श्रम मंत्री हरीश दुर्गापाल के खिलाफ जबरदस्त गुस्से से भरे हजारों किसान दिन भर तहसील गेट को घेरे रहे. जब तहसील रोड पूरी तरह भर गयी तो आन्दोलनकारी तहसील के निर्माणाधीन आवासीय परिसर में भी फ़ैल गए और छतों पर भी चढ़ गए. घेराव कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिलाओं व नौजवानों की भागीदारी उल्लेखनीय थी.

असल में पूर्णतः खेती व पशुपालन पर निर्भर लगभग 60 हजार की आबादी वाला बिन्दुखत्ता क्षेत्र पूरी तरह वन भूमि में बसा है. 70 से 80 के दशक के बीच चले भूमि दखल आन्दोलन में बिन्दुखत्ता का विस्तार हुआ और लगभग 11 हजार एकड़ वन भूमि पर पहाड़ के भूमिहीन और अनुसूचित जाति के लोग बस गए. उस दौर में वन विभाग और राज्य सरकार ने बिन्दुखत्ता को कई बार उजाड़ने का प्रयास किया पर भाकपा (माले) के नेतृत्व में हर बार जन प्रतिरोध के जरिये जमीन की रक्षा की गई. इसके बाद बिन्दुखत्ता में जन सुविधाओं के लिए भाकपा (माले) व उसके किसान संगठन के नेतृत्व में लगातार आन्दोलन चलते रहे और क्षेत्र में सभी बुनियादी नागरिक सुविधाएं मिलने लगी. इसके बाद बिन्दुखत्ता को राजस्व गाँव बनाने के मुद्दे पर जनता को संगठित किया गया. बाद के दौर में अन्य पार्टियों को भी बिन्दुखत्ता को राजस्व गाँव बनाने का वायदा करना पड़ा. वर्तमान विधायक व श्रम मंत्री हरीश दुर्गापाल ने भी इसी मुद्दे पर दो बार वोट मांग कर जीत दर्ज की. मगर अब भू-माफिया के साथ मिलीभगत कर वे बिन्दुखत्ता को नगर पालिका बनाने पर तुले हैं.

उन्हीं के दबाव में 19 दिसंबर 2014 को राज्य सरकार ने नैनीताल जिले के बिन्दुखत्ता को नगर पालिका बनाने की अंतरिम अधिसूचना जारी की थी. 20 दिसंबर को अखिल भारतीय किसान महासभा ने एक आपात बैठक कर इसका विरोध करने का निर्णय लिया. 21 दिसंबर को किसान महासभा के एक प्रतिनिधिमंडल ने उप-जिलाधिकारी लालकुआं के माध्यम से किसानों की आपत्तियां दर्ज कराई. इसके साथ ही 24 दिसंबर को किसान महासभा के नेतृत्व में 400 किसानों ने तहसील पर प्रदर्शन कर लगभग 900 लोगों की और से उप-जिलाधिकारी को आपत्तियां सौपी. साथ ही इन आपत्तियों को निदेशक शहरी विकास देहरादून को फैक्स भी किया गया ताकि आपत्तियां समय पर दर्ज हो सकें. इसके बाद किसान महासभा ने बिन्दुखत्ता के 16 गाँवों में किसान पंचायतें कर नगर पालिका के खिलाफ किसानों को जागरुक व गोलबंद किया. इन किसान पंचायतों में किसानों की बढ़ती संख्या ने इस धारावाहिक आन्दोलन की नीव डाल दी थी. इसके बाद किसान महासभा ने 28 जनवरी को एक किसान महापंचायत का आह्वान किया. 28 जनवरी की किसान महापंचायत में उमड़ी हजारों किसानों की भीड़ ने यहाँ चले 80 के दशक के भूमि आन्दोलनों की भागीदारी का रिकार्ड भी तोड़ दिया.

बिन्दुखत्ता क्षेत्र की व्यापक जनता के विरोध के बावजूद राज्य सरकार ने क्षेत्र के विधायक व श्रम मंत्री हरीश दुर्गापाल के दबाव में 25 फरवरी 2015 को जनता की आपत्तियों पर सुनवाई किए बिना चुपचाप बिन्दुखत्ता नगर पालिका की अधिसूचना जारी कर दी. इसकी सूचना 15 दिन बाद एक समाचार पत्र में छोटा सा विज्ञापन देकर की गयी. इसके विरोध में 17 मार्च 2015 को बिन्दुखत्ता के सैकड़ों किसानों ने देहरादून में विधान सभा के सामने प्रदर्शन किया. विधानसभा मार्च में राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ किसान नेताओं के एक प्रतिनिधि मंडल की वार्ता हुई. वार्ता में मुख्यमंत्री ने वायदा किया कि अगर जनता नगर पालिका नहीं चाहती तो मेरी सरकार भी जिद नहीं करेगी. मगर दो दिन बाद 19 मार्च को ही राज्य सरकार ने एस.डी.एम. हल्द्वानी भाबर को बिन्दुखत्ता नगर पालिका का प्रशासक व तहसीलदार लालकुआं को अधिशासी अधिकारी नियुक्त कर दिया. किसान महासभा ने इसके खिलाफ 25 मार्च से लालकुआं तहसील पर घेरा डालो – डेरा डालो और सामूहिक भूख हड़ताल कार्यक्रम की घोषणा कर दी.

25 मार्च को लगभग 2000 किसानों ने फिर विरोध स्वरूप तहसील कार्यालय तक मार्च किया और घेरा डालो – डेरा डालो कार्यक्रम की शुरुआत की. उसी दिन 26 लोगों ने सामूहिक भूख हड़ताल शुरू कर दी. इनमें से पांच लोगों ने भूख हड़ताल आगे भी जारी रखी. इनके साथ रोजाना दर्जनों लोग सामूहिक भूख हड़ताल पर बैठने लगे. 29 मार्च को युवाओं का मशाल जुलूस कार्यक्रम रखा गया. इसमें लगभग 400 युवाओं ने मशाल जुलूस निकाला. मशाल जुलूस में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हुई. सरकार द्वारा अपनाए जा रहे अड़ियल रुख के कारण किसान महासभा ने 1 अप्रैल को तहसील घेराव का कार्यक्रम दिया और साथ ही उच्च न्यायालय में नगर पालिका के गठन को चुनौती दी. जिसे 1 अप्रैल को माननीय उच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया और राज्य सरकार को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने का आदेश जारी कर दिया की उसने जनता आपत्तियों पर सुनवाई किए बिना नगर पालिका कैसे गठित कर दी. इसकी सूचना तहसील घेराव कार्यक्रम के दौरान ही पहुंची. कार्यक्रम का नेतृत्व अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा, बहादुर सिंह जंगी, भुवन जोशी, विमला रौथाण आदि किसान नेता कर रहे थे. भाकपा ( माले) के राज्य सचिव राजेन्द्र प्रथोली, जिला सचिव कैलाश पाण्डेय भी आन्दोलन में शामिल थे.

2015_04_03a_press_note_photo_2आन्दोलन कारियों को संबोधित करते हुए किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा ने कहा कि हरीश रावत सरकार ने भू-माफिया के हितों को ध्यान में रख कर ही बिन्दुखत्ता को जबरन नगर पालिका बनाया है. उन्होंने कहा कि बिन्दुखत्ता नगर पालिका के गठन में राज्य सरकार ने कानून व संविधान के प्रावधानों का खुला उलंघन किया है. यही नहीं जनता की ओर से दर्ज आपत्तियों पर कोई सुनवाई किये बिना चुपचाप नगर पालिका की अधिसूचना जारी कर दी गयी. उन्होंने कहा कि यह सरकार माफिया की सरकार है और बिन्दुखत्ता के ग़रीबों की जमीनों को छीनने के लिए ही स्थानीय विधायक व श्रम मंत्री हरीश दुर्गापाल ने बिन्दुखत्ता को नगर पालिका बनाने का षडयंत्र रचा है. उन्होंने कहा कि पूर्णतः ग्रामीण परिवेश और बिखरी बसासत वाले बिन्दुखत्ता में 98 प्रतिशत लोग खेती व पशुपालन से अपनी आजीविका चलाते हैं. पिछले चालीस साल से राजस्व गाँव की मांग पर आन्दोलन कर रहे बिन्दुखत्ता वासियों के साथ स्थानीय विधायक व श्रम मंत्री हरीश दुर्गापाल ने भू-माफिया से मिलीभगत कर धोखा किया है. उन्होंने कहा कि नगर पालिका हटाए बिना बिन्दुखत्ता के किसानों को उनकी जमीन का मालिकाना हक़ नहीं मिल सकता है.

कामरेड शर्मा ने आन्दोलनकारियों को सूचित किया कि आज उच्च न्यायालय में दायर हमारी याचिका को न्यायालय ने स्वीकार कर राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाब माँगा है कि सरकार ने जनता की आपत्तियों पर सुनवाई किये बिना नगर पालिका का गठन कैसे कर दिया? उन्होंने कहा कि न्यायालय द्वारा दिए गए समय की अवधि तक हम अपने आन्दोलन को स्थगित करेंगे और नगर पालिका वापस न होने की स्थिति में अगली बार हजारों किसान श्रम मंत्री के घर का घेराव करेंगे. उन्होंने आन्दोलन में महिलाओं व नौजवानों की बढ़ती भागीदारी को आन्दोलन की सफलता के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए सबका आभार जताया और संघर्ष को जीत तक पहुंचाने के लिए संघर्ष जारी रखने का आह्वान किया. कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा ने इस आन्दोलन को समर्थन देने वाले सभी दलों, संगठनों, व्यक्तियों और मीडिया का किसान महासभा व बिन्दुखता के किसानों की और से आभार जताया.

उन्होंने सांसद व भाजपा नेता भगत सिंह कोश्यारी के बयान को भ्रामक व तत्थ्यहीन बताते हुए कहा कि कोश्यारी अपने कार्यकर्ताओं से झूठ बोल रहे हैं कि उनकी सरकार ने बिन्दुखता को राजस्व गाँव बनाने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था जिसे कांग्रेस की सरकार ने लौटा दिया. उन्होंने कहा कि कोश्यारी जी के मुख्यमत्री काल में केंद्र में अटल बिहारी बाजपेई की सरकार थी. यही नहीं राजस्व गाँव का निर्माण भी राज्य सरकार करती है न की केंद्र सरकार. राज्य सरकार को तो बिन्दुखत्ता के वन भूमि हस्तांतरण का प्रस्ताव केंद्र को भेजना है जिसे भाजपा – कांग्रेस किसी भी सरकार ने आज तक नही भेजा है. उन्होंने कहा कि भाजपा का राज्य नेतृत्व भी भू-माफिया का संरक्षक है और बिन्दुखत्ता नगर पालिका का समर्थक है. इसी लिए आज तक भाजपा के राज्य नेतृत्व ने और नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट ने सरकार के इस जन विरोधी फैसले का विरोध नहीं किया है.

सभा को संबोधित करते हुए भाकपा ( माले) के राज्य सचिव राजेन्द्र प्रथोली ने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा बिन्दुखत्ता के किसान नेताओं से जनता की इच्छा के विपरीत फैसला न लेने का वायदा किया गया था. मगर दो दिन बाद ही मुख्य मंत्री ने अपने वायदे से पलट कर मुख्यमंत्री पद की गरिमा को गिराया है. उन्होंने कहा कि पूरे बिन्दुखत्ता की जनता तीन माह से आन्दोलन में है फिर भी राज्य सरकार जन भावना के खिलाफ लिए गए अपने फैसले पर अड़ी है. कामरेड प्रथोली ने इस सवाल पर भाजपा के दोहरे रोल को पहचानने को कहा. उन्होंने कहा कि भाजपा के स्थानीय नेता पालिका का विरोध कर रहे हैं पर ऊपरी नेता पालिका के पक्ष में में चुप बैठे हैं. अगर नेता प्रतिपक्ष विधानसभा में इस मुद्दे को उठाते तो सरकार पालिका का प्रशासक नियुक्त न कर पाती. उन्होंने पालिका को वापस कराने तक आन्दोलन को जारी रखने व भाकपा (माले) की ओर से आन्दोलन को हर संभव सहयोग करने का वायदा किया. सभा को किसान नेता बहादुर सिंह जंगी, भुवन जोशी. बसंती बिष्ट, विमला रौथान, भाकपा ( माले) के जिला सचिव कैलाश पाण्डेय, कमलापति जोशी, पुष्कर दुबड़िया, आनंद सिजवाली, शंकर जोशी, ललित मटियाली, पुष्कर पांडा, लक्ष्मण सुयाल, किशन बघरी, नीमा देवी आदि ने भी संबोधित किया. इसके बाद आठ दिनों से सामूहिक भूख हड़ताल पर बैठे मंगल सिंह कोश्यारी, कुंवर सिंह चौहान, शेर सिंह कोरंगा और पांच दिन से बैठे विपिन सिंह बोरा को कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा और कामरेड राजेन्द्र प्रथोली ने अस्पताल जाकर जूस पिलाया और उनका अनशन ख़त्म कराया. इन चारों अनशनकारियों को पुलिस ने 31 मार्च को आन्दोलन स्थल से दोबारा जबरन उठाकर हल्द्वानी बेस अस्पताल में भरती कराया था.

इधर आन्दोलन में व्यापक जनता की भागीदारी और किसान महासभा की याचिका पर उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश के बाद जहाँ क्षेत्र के किसान काफी उत्साहित हैं और आन्दोलन की अगली कार्यवाही के इंतज़ार में हैं, वहीँ स्थानीय विधायक व श्रम मंत्री हरीश दुर्गापाल तथा उनके कार्यकताओं का मनोबल गिरा है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने बौखलाहट में 4 अप्रैल को किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव व आन्दोलन की अगुवाई करने वाले कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा का पुतला जलाया. इससे पहले भी कांग्रेस कार्यकर्ता नगर पालिका का विरोध करने वाले भाकपा (माले) व जनता का पुतला जला चुके हैं. इधर किसान महासभा के नेतृत्व में चल रहे आन्दोलन के बाद बिन्दुखत्ता नगर पालिका का विरोध अन्य दलों ने भी किया है. इनमें भाजपा, उत्तराखंड क्रांति दल, आम आदमी पार्टी, शिव सेना आदि शामिल हैं मगर इनका विरोध सांकेतिक है.

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